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प्रहलाद वल्लभ गोस्वामी ने बताया कि सन 1755 में महादाजी शिंदे के नेतृत्व में ग्वालियर रियासत के अधीन आ चुके मथुरा जनपद के तत्कालीन न्यायाधीश प्रहलाद सेवा ने निष्पक्ष निर्णय सुनाते हुए बिहारीजी का सेवाधिकार गोस्वामीजनों को सौंपने का एवं दूसरे पक्ष के प्रमुख दोषियों को बारह वर्ष के क्षेत्र निकालने का महत्वपूर्ण आदेश पारित किया। इसके बाद सन 1787 ईसवीं में बिहारीजी को लेकर सेवायतगण पुराने शहर के पास दुष्यंतपुर (दुसायत) में पूर्व में जयपुर रियासत से दान में मिली भूमि पर एक छोटा सा मंदिर बनाकर उसी के आसपास रहने लगे, इसी क्षेत्र को अब बिहारीपुरा कहा जाता है।
इतिहासकार प्रहलाद वल्लभ ने बताया कि मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल सूबेदार महाराजा सवाई मानसिंह प्रथम ने ही हरिदासजी के निवासस्थल निधिवन की कई एकड़ भूमि के मालिकाना हक से संबंधित दस्तावेज जगन्नाथजी को सौंपे थे। इन्हीं सबूतों के बल पर गोस्वामी आज तक निधिवन के अधिकारी बने हुए हैं।
सन 1790 में करौली के तत्कालीन महाराज मानकपाल की अनुमति से वृंदावन में उनके पूर्वज गोपालसिंह के नाम से बने हुए गोपालबाग के एक हिस्से को ठाकुर मदन मोहन मंदिर के तत्कालीन गद्दीनशीन गोस्वामी अतुल कृष्णदेव से बिहारीजी मंदिर को किराए पर दिलाया था। कई वर्षों तक भूमिभाड़ा न चुका पाने पर हुए विवाद का निपटारा करते हुए करौली राजा ने इस भूखंड का माफ़ी (बिना किराए का पट्टा कराकर) जमीन बिहारीजी मंदिर को सौंप दी। यही जगह अब मोहनबाग के नाम से जानी जाती है।
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