Thursday, January 9, 2025
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Uterine Cancer Symptoms Are Not Necessary Women Between 20 And 45 Years Old Need To Be Tested – गर्भाशय कैंसर: जरूरी नहीं लक्षण दिखे, 20 से 45 वर्ष की महिलाओं को जांच कराना जरूरी

by amitsagar
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लखनऊ के एसजीपीजीआई हॉस्पिटल से आईं डॉ. अंजू रानी ने कहा कि बच्चेदानी के मुंह के कैंसर को प्रारंभिक स्टेज में उपचार से ठीक किया जा सकता है। इसका लक्षण अनियमित रक्तस्राव होता है। ऐसा हो तो स्क्रीनिंग जरूर कराएं। जरूरी नहीं है कि लक्षण दिखे ही। बिना लक्षण वाली महिलाओं की भी 20 से 45 वर्ष की उम्र में 3 से 5 साल के अंतराल में जांच कराते रहना चाहिए। 

डॉ. अंजू रानी यूपी स्टेट चैप्टर ऑफ एसोसिएशन ऑफ गायनेकोलॉजी ऑंकोलॉजिस्ट ऑफ इंडिया (यूपीएससी आगोई) की ओर से शनिवार को होटल पीएल पैलेस, संजय प्लेस में सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) को संबोधित कर रही थीं। विषय था ‘बच्चेदानी के कैंसर को एडवांस स्टेज में पहुंचने से पहले रोकना व उसके प्रबंधन।’ स्क्रीनिंग में रोग पकड़ में न आने पर मशीन के जरिये देखकर बायोप्सी कराई जाती है। इस कैंसर से बचने के लिए स्क्रीनिंग में (पैप टेस्ट, एचबीपी डीएनए और वीआईए जांच) कराते रहना चाहिए। देश में प्रतिवर्ष 70 हजार महिलाओं की मौत इस कैंसर से होती है। पूरे विश्व के 25 फीसदी मरीज देश में हैं।  

इससे पहले एसएन मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. प्रशांत गुप्ता ने सीएमई का उद्घाटन किया। आयोजन की अध्यक्ष (यूपी चैप्टर अगोई अध्यक्ष) प्रो. सरोज सिंह व आयोजन सचिव प्रो. शिखा सिंह (एसएन मेडिकल कॉलेज) रहीं। संयोजन एसएन की प्रो. रिचा सिंह व प्रो. निधि गुप्ता का रहा। एओजीएस अध्यक्ष डॉ. आरती मनोज शर्मा, सचिव डॉ. सविता त्यागी, राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट से डॉ. रुपिंदर सेखों, जेएन मेडिकल कॉलेज, अलीगढ़ की डॉ. सीमा हकीम, डॉ. जेहरा मोहसिन, डॉ. शाजिया ने भी विचार व्यक्त किए। एसएन के प्रमुख अधीक्षक डॉ. बृजेश शर्मा, डॉ. अखिल प्रताप सिंह की भी उपस्थिति रही। 

माहवारी के बाद भी खून जाना खतरे की घंटी 

वेंकटेश्वर हॉस्पिटल द्वारका, दिल्ली की गानयिक ओंकोलॉजिस्ट डॉ. श्वेता गिरि ने कहा कि कैंसर ठीक हो सकता है, बस समय पर पता लगना चाहिए। माहवारी के बाद भी खून जाना खतरे की घंटी है। समय से बीमारी का पता चलने पर 98 फीसदी तक मरीज ठीक हो रहे हैं। शहरी क्षेत्र की अपेक्षा गांव में अभी जागरुकता कम है। 

20 पेपर व पोस्टर प्रस्तुत किए गए 

सीएमई में करीब 150 चिकित्सकों ने प्रतिभाग किया। वहीं, 20 ने पेपर और पोस्टर प्रस्तुत किया। विशेषज्ञों ने पॉवर प्वाइंट प्रेजेंटेशन दिया। प्रो. उर्वशी, प्रो. अनु पाठक, प्रो. रुचिका गर्ग, डॉ. संगीता साहू, डॉ. नेहा अग्रवाल व डॉ. नीलम ने सीएमई में सहयोग दिया।  

विस्तार

लखनऊ के एसजीपीजीआई हॉस्पिटल से आईं डॉ. अंजू रानी ने कहा कि बच्चेदानी के मुंह के कैंसर को प्रारंभिक स्टेज में उपचार से ठीक किया जा सकता है। इसका लक्षण अनियमित रक्तस्राव होता है। ऐसा हो तो स्क्रीनिंग जरूर कराएं। जरूरी नहीं है कि लक्षण दिखे ही। बिना लक्षण वाली महिलाओं की भी 20 से 45 वर्ष की उम्र में 3 से 5 साल के अंतराल में जांच कराते रहना चाहिए। 

डॉ. अंजू रानी यूपी स्टेट चैप्टर ऑफ एसोसिएशन ऑफ गायनेकोलॉजी ऑंकोलॉजिस्ट ऑफ इंडिया (यूपीएससी आगोई) की ओर से शनिवार को होटल पीएल पैलेस, संजय प्लेस में सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) को संबोधित कर रही थीं। विषय था ‘बच्चेदानी के कैंसर को एडवांस स्टेज में पहुंचने से पहले रोकना व उसके प्रबंधन।’ स्क्रीनिंग में रोग पकड़ में न आने पर मशीन के जरिये देखकर बायोप्सी कराई जाती है। इस कैंसर से बचने के लिए स्क्रीनिंग में (पैप टेस्ट, एचबीपी डीएनए और वीआईए जांच) कराते रहना चाहिए। देश में प्रतिवर्ष 70 हजार महिलाओं की मौत इस कैंसर से होती है। पूरे विश्व के 25 फीसदी मरीज देश में हैं।  

इससे पहले एसएन मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. प्रशांत गुप्ता ने सीएमई का उद्घाटन किया। आयोजन की अध्यक्ष (यूपी चैप्टर अगोई अध्यक्ष) प्रो. सरोज सिंह व आयोजन सचिव प्रो. शिखा सिंह (एसएन मेडिकल कॉलेज) रहीं। संयोजन एसएन की प्रो. रिचा सिंह व प्रो. निधि गुप्ता का रहा। एओजीएस अध्यक्ष डॉ. आरती मनोज शर्मा, सचिव डॉ. सविता त्यागी, राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट से डॉ. रुपिंदर सेखों, जेएन मेडिकल कॉलेज, अलीगढ़ की डॉ. सीमा हकीम, डॉ. जेहरा मोहसिन, डॉ. शाजिया ने भी विचार व्यक्त किए। एसएन के प्रमुख अधीक्षक डॉ. बृजेश शर्मा, डॉ. अखिल प्रताप सिंह की भी उपस्थिति रही। 

माहवारी के बाद भी खून जाना खतरे की घंटी 

वेंकटेश्वर हॉस्पिटल द्वारका, दिल्ली की गानयिक ओंकोलॉजिस्ट डॉ. श्वेता गिरि ने कहा कि कैंसर ठीक हो सकता है, बस समय पर पता लगना चाहिए। माहवारी के बाद भी खून जाना खतरे की घंटी है। समय से बीमारी का पता चलने पर 98 फीसदी तक मरीज ठीक हो रहे हैं। शहरी क्षेत्र की अपेक्षा गांव में अभी जागरुकता कम है। 

20 पेपर व पोस्टर प्रस्तुत किए गए 

सीएमई में करीब 150 चिकित्सकों ने प्रतिभाग किया। वहीं, 20 ने पेपर और पोस्टर प्रस्तुत किया। विशेषज्ञों ने पॉवर प्वाइंट प्रेजेंटेशन दिया। प्रो. उर्वशी, प्रो. अनु पाठक, प्रो. रुचिका गर्ग, डॉ. संगीता साहू, डॉ. नेहा अग्रवाल व डॉ. नीलम ने सीएमई में सहयोग दिया।  

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