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ताजमहल
– फोटो : istock
विस्तार
ताजमहल में शाहजहां के उर्स पर रोक की मांग करते हुए अदालत में याचिका दायर की गई है। इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि ताजमहल में उर्स की रवायत इसके निर्माण के समय से ही जुड़ी है। 392 साल पहले मुमताज महल का पहला उर्स 22 जून, 1632 को मनाया गया था। ताज में मुमताज का दूसरा उर्स 26 मई, 1633 को मकबरे वाली जगह पर ही टेंट लगाकर मनाया गया था। लगातार 12 वर्षों तक मुमताज के हर उर्स में शाहजहां ने एक लाख रुपये गरीबों में बांटे थे।
आस्ट्रियाई इतिहासकार ईबा कोच ने अपनी किताब ‘दि कंप्लीट ताजमहल एंड द रिवरफ्रंट गार्डन्स ऑफ आगरा में’ लिखा है कि ईरानी इतिहासकार जलालुद्दीन ने उर्स का ब्योरा दिया है, जिसमें कहा गया है कि जनवरी, 1632 में बुरहानपुर से मुमताज महल का शव आगरा लाया गया था। ताजमहल का निर्माण शुरू होने के समय मुमताज का पहला उर्स 22 जून, 1632 को मनाया गया। इसमें शहंशाह शाहजहां, मुमताज के पिता आसफ खां, ईरानी राजदूत मुहम्मद अली बेग के साथ देशभर के अमीर और मनसबदार सफेद लिबास में आए और अपने रैंक के मुताबिक बैठे। शाहजहां ने कुरान की आयतें पढ़ने के साथ मुमताज के लिए फातिहा पढ़ा। शाहजहां ने गरीबों व जरूरतमंदों को 50 हजार रुपये बांटे। उर्स में शामिल हुई शाही परिवार की महिलाओं ने गरीब महिलाओं को 50 हजार रुपये बांटे थे। शाहजहां ने उस समय प्रतिवर्ष एक लाख रुपये की धनराशि उर्स के लिए तय की थी।
6 लाख रुपये से बनाई गई सोने की जाली
ईबा कोच की पुस्तक में दर्ज ब्योरे के मुताबिक 26 मई, 1633 को मुमताज का दूसरा उर्स मनाया गया था। तब तक यमुना किनारे पर मकबरे का निचला तल बनकर तैयार हो गया था। इसमें एक हजार लोग देशभर से शामिल हुए थे। शाम को आगरा किला से नाव के जरिए यमुना किनारे शाहजहां, जहांआरा और शाही परिवार के सदस्य आए। अस्थायी सीढि़यों से वह ऊपर तक चढ़े और यहां फातिहा पढ़ने के बाद गरीबों को एक लाख रुपये के साथ कपड़े भी दान किए। शाही परिवार के सुनार बिबादल खान ने तब 6 लाख रुपये की लागत से सोने की जाली बनाई थी, जिसे कब्र के चारों ओर रखा गया था। वर्ष 1643 में सोने की जाली को मौजूदा संगमरमरी जाली से बदल दिया गया।
14 साल तक लगातार चला उर्स
15 जनवरी, 1645 तक शाहजहां ताजमहल में मुमताज के उर्स में शामिल हुए। हर उर्स के लिए एक लाख रुपये की रकम तब तय कर दी गई थी। उसके बाद शाहजहां आखिरी बार वर्ष 1654 में ताजमहल आया। वर्ष 1658 में कैद में जाने के बाद उर्स और ताज जाने का कोई ब्योरा नहीं है। वर्ष 1666 में शाहजहां की माैत के बाद उसका उर्स शुरू हुआ, जो अब तक जारी है। तीन दिन के उर्स के दौरान ही शाहजहां मुमताज की तहखाने में मौजूद असली कब्रों को देखा जा सकता है।
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