[ad_1]
वृंदावन में आदिवासी मोनिया भक्तों ने मोरपंखी के साथ किया नृत्य
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
तीर्थनगरी मथुरा के वृंदावन में झारखंड एवं मध्यप्रदेश के कृष्ण भक्त टोलियों में वृंदावन हजारों की संख्या में आए हैं। घरों से दिवाली मनाने आए आदिवासी कृष्ण भक्तिमय होकर अपने साथ लाए मोर पंखों को यमुना में विसर्जन कर रहे हैं। इससे पहले वह वृंदावन की कुंज गलियों और यमुना किनारे पारंपरिक पोशाक में मोर पंख लिए नृत्य कर रहे हैं। जो ब्रजवासियों के आकर्षक का केंद्र बने हैं।
वृंदावन में इन दिनों झारखण्ड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों से हजारों लोग दिवाली मनाने वृंदावन आए हैं। वह हाथों में मोरपंख लिए और कौड़ी और घंटियों से सजी विशेष प्रकार की पोशाक में महिला और पुरुष नगर के प्राचीन सप्तदेवालयों में राधा गोविंददेव, राधादामोदर, राधामदनमोहन,राधागोकुलानंद एवं विशाल रंगजी मंदिर में प्रभु दर्शन और पूजन करने के पश्चात मंदिर में आदिवासी पारंपरिक नृत्य कर रहे हैं।
ढोल-नगाड़ों की थाप के बीच इस अनूठे नृत्य और इनकी आस्था के साथ परंपरागत कला को देखने के लिए लोगोें में मंदिरों में लोगों विभिन्न राज्योें से आए भक्तों के कदम भी ठहर जाते हैं। झारखंड के डुमका जिला निवासी सोरेन ने बताया कि झारखंड में सैकड़ों वर्षों से चली आ रही धर्म परंपरा के अनुसार वर्ष भर जो गोचारण के दौरान जंगल में मोरपंख मिलती हैं।
बताया कि उन्हें एकत्र कर दिवाली मनाने के लिए वृंदावन आते हैं। घर से मौन व्रत करके वृंदावन के लिए निकलते हैं। यहां आकर प्रभु दर्शन करने के पश्चात ही मौन व्रत खोला जाता है। यही कारण है कि ब्रजवासी इन्हें आदिवासी मोनिया के नाम से पुकारते हैं। यह धर्म परंपरा ब्रज को झारखंड, मध्यप्रदेश से जोड़ती है। मान्यता है कि वृंदावन के मंदिरों में प्रभु दर्शन कर नृत्य करने से जीव का उद्धार हो जाता है।
[ad_2]
Source link