[ad_1]
पास में ही कैप्टन शुभम गुप्ता के पिता बसंत गुप्ता खड़े थे। बेटे के बहादुरी से गर्व तो था ही, लेकिन लाडले के जाने का दर्द छुपा नहीं पाए। आंखें छलक पड़ीं। खुद को संभालते हुए गर्व से जय हिंद कहते हुए सलामी दी। ये देख अन्य लोग भी आंसू नहीं रोक पाए और कैप्टन शुभम जिंदाबाद के नारे लगाने लगे।
वर्दी-तिरंगे से लिपट रोई मां, बोली- मेरे बेटे को भी लेकर आओ
सेना के जवानों ने जब कैप्टन शुभम की वर्दी और तिरंगा सौंपा तो मां के हाथ-पैर कांपने लगे। मानों उनके हृदय पर दुनिया जहां का दुख टूट पड़ा हो। उनके आंसू नहीं रुक रहे थे, उन्होंने यही कहा कि मेरे बेटे की आखिरी निशानी तो ले आए, लेकिन उसे लेकर क्यों नहीं आए। इतना कहते ही वर्दी को बेटे की तरह दुलारने लगीं।
परिजन करते रहे समझाने की कोशिश
वर्दी पर लगे मेडल चूमती तो कभी उसे सीने से लगा लेतीं। काफी देर तक मां बेटे की आखिरी निशानी को निहारती रहीं। मां की ये दशा देख परिजनों ने हमारा शुभम देश के लिए बलिदान हुआ कहते हुए समझाने की कोशिश की।
बलैया लेकर जांबाज को दी अंतिम विदाई
27 साल की उम्र में कैप्टन शुभम के बलिदान से हर किसी की आंखें नम थीं। अंतिम दर्शन कर लोग कैप्टन शुभम अमर रहे, जिंदाबाद के नारे लगाकर नमन कर रहे थे। भीड़ में ऐसे ही एक महिला भी पहुंची, जिन्होंने जांबाज को बलैया लेकर अंतिम विदाई दी। उनका कहना था कि आतंकियों से मुकाबला करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ है। उसके बलिदान का गर्व महसूस करते हुए नजर उतारकर विदा किया है।
[ad_2]
Source link