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हैंडपंप से आता दूषित पानी
– फोटो : अमर उजाला
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आगरा में भूजल गुणवत्ता सुधारने में जल निगम ने 12 साल में 30 हजार करोड़ रुपये पानी में बहा दिए। लेकिन, हालात में खास सुधार नहीं हुआ। पट्टी पचगईं सहित आठ गांवों में फ्लोराइडयुक्त पानी की घूंट से 1000 जिंदगियां दिव्यांग हो गईं। 10 हजार से अधिक युवा बीमार हैं। इस विषाक्त भूजल के कारण 900 से अधिक गांवों में गुणवत्ता प्रभावित है। अब यहां लोगों को गंगाजल की आपूर्ति होने की आस है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पट्टी पचगईं निवासी गिरीश चंद्र शर्मा की याचिका पर प्रमुख सचिव ग्राम्य विकास व ग्रामीण जलापूर्ति को छह सप्ताह में गुणवत्ता प्रभावित गांवों की जांच रिपोर्ट के साथ तलब किया है। याचिकाकर्ता ने बताया कि जिले के किसी गांव में भूजल पीने योग्य नहीं है।
क्षेत्र के पट्टी पचगईं, पचगईं, खेड़ा, देवरी, गढ़ी देवरी, नगला, रोहता, रोहता की गढ़ी, अस्तल और नगला भर्ती में करीब 25 हजार आबादी है। इनमें 1000 बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं दिव्यांग हैं। फ्लोराइडयुक्त पानी से इनके हाथ, पैर की हड्डियां टेढ़ी-मेढ़ी हो गई हैं। करीब 10 हजार लोग बीमार हैं। इन आठ गांवों में 10 बार टीटीएसपी, पाइपलाइन और ओवरहेड योजनाएं बनीं लेकिन फेल हो गईं।
फेल हो गए 72 हजार हैंडपंप
गिरीश चंद्र ने बताया कि 2004 में उन्होंने यह समस्या उठाई। केंद्र सरकार ने जांच कराई तो 900 गांव गुणवत्ता प्रभावित मिले। फिर 2005 से 2017 तक पानी के नाम पर धन का दोहन हुआ। 72 हजार हैंडपंप लगे जो सालभर भी नहीं चले। 6350 भूजल आधारित टीटीएसपी टंकियां लगीं, जिनमें अब बमुश्किल 150 चालू हालत में हैं। 2 से 5 करोड़ रुपये लागत के 500 से अधिक ओवरहेड टैंक व पाइपलाइन बिछाई गईं, जो अब बंद हैं। पिछले 12 साल में करीब 30 हजार करोड़ रुपये पेयजल योजनाओं पर खर्च होने के बाद भी 30 लाख से अधिक लोग खारा पानी या फ्लोराइड युक्त भूजल पर निर्भर हैं।
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