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जन-जन के आराध्य ठाकुर श्रीबांकेबिहारीजी महाराज के सेवायत आराध्य की सेवार्थ सर्वस्व समर्पण करने से पीछे नहीं रहते हैं। कई बार मंदिर पर आये संकटकाल में सेवायतों ने तन, मन और धन सहित शहादत तक दी है। 158 वर्ष पहले 13 वर्ष में 70 हजार रुपये की लागत से ठाकुर बांके बिहारी मंदिर बनकर तैयार हुआ था। मंदिर के सेवायत आचार्य प्रहलाद वल्लभ गोस्वामी ने बताया कि ब्रिटिश शासनकाल में फतेहपुर, मैनपुरी, बुलंदशहर एवं मथुरा के जिला कलक्टर रहे फैड्रिक सेलमोन ग्राउस (वर्ष 1836-93) द्वारा लिखित पुस्तक ‘मथुरा: ए डिस्ट्रिक्ट मेमोयर’ में श्रीबांकेबिहारी मंदिर के इतिहास का उल्लेख किया है। अपनी पुस्तक में लिखा है कि 1864 में बिहारीजी के तेजतर्रार पढ़े-लिखे विद्वान सेवायतों ने 70 हजार रुपयों में 13 वर्षों की मेहनत के बाद बिहारीजी का मौजूदा मंदिर बनाया था।
जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह का योगदान
वर्ष 1835 से 10 अगस्त 1881 तक जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह (द्वितीय) के कार्यकाल में बृज-वृंदावन में उनकी रियासती सम्पत्ति के धर्मशाला, मंदिर, देवस्थान आदि के निर्माण और पुन: उद्धार का कार्य तेजी से चल रहा था।
अधिकांश राजस्थानी स्थापत्य कला का प्रदर्शक शुरुआत में लाल पत्थर से निर्मित हुआ था, बाद में इस पर सफ़ेद मार्बल लगाया गया। अब इस पर चांदी चढ़ रही है।
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