Wednesday, January 8, 2025
Home Agra Taj Mahal Maintenance From The Earnings Of Tajganj Market In 1640 – Exclusive: ताजगंज बाजार की कमाई से सहेजा जाता था ताजमहल, मुमताजाबाद दिया गया था नाम

Taj Mahal Maintenance From The Earnings Of Tajganj Market In 1640 – Exclusive: ताजगंज बाजार की कमाई से सहेजा जाता था ताजमहल, मुमताजाबाद दिया गया था नाम

by amitsagar
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ताजमहल के 500 मीटर परिधि के अंदर चल रही व्यावसायिक गतिविधियों को बंद करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश हैं। दूसरी ओर मुगलिया दौर में ताजमहल दक्षिणी गेट पर बने चारों कटरों के ताजगंज बाजार की दुकानों के किराए और आय से ही ताजमहल की देखरेख होती थी। वर्ष 1640 से ही दक्षिणी गेट पर बाजार था, जिसमें दुनिया भर की चीजें उपलब्ध थीं। मुगल शहंशाह शाहजहां पर आधारित पुस्तक ‘पादशाहनामा’ के लेखक अब्दुल हमीद लाहौरी ने पुस्तक में ताजगंज दक्षिणी गेट के बाजार, दुकानों और उनसे होने वाली आय से ताज के खादिमों, केयर टेकर, प्रबंधन, वेतन, खाने-पीने पर होने वाले खर्च का ब्योरा दिया है।

मुगलिया दौर से लेकर ब्रिटिश हुकूमत तक ताजमहल के दक्षिणी गेट के बाजार का ब्योरा है। इतिहासकार अब्दुल हमीद लाहौरी ने ताजगंज बाजार के निर्माण पर 50 लाख रुपये खर्च होने का वर्णन किया है। मकरामत खान और मीर अब्दुल करीम की देखरेख में बने इस बाजार से सालाना एक से दो लाख रुपये की आय होने और विभिन्न मदों में खर्च होने का जिक्र है। खासकर एंब्रोइडरी के पर्दे, कपड़ों का यहां बड़ा काम था। 

ताजमहल परिसर का हिस्सा हैं चारों कटरे और ताजगंज

आस्ट्रियाई इतिहासकार ईबा कोच ने अपनी पुस्तक ‘रिवरफ्रंट गार्डंस ऑफ आगरा’ में लिखा है कि ताजगंज और चारों कटरे ताजमहल के मूल डिजाइन का हिस्सा थे। यह व्यावसायिक गतिविधियों के लिए ही बनाए गए थे। चारों कटरों को तब चारसू बाजार नाम दिया गया था, जो बाद में मुमताजाबाद में बदल गया। ईबा कोच की पुस्तक में अब्दुल हमीद लाहौरी के हवाले से ताजमहल पूरा होने पर लिखे गए लेख में कहा गया है कि चार कारवां सराय खिश्त ए पुख्ता यानी पकी ईंटों और चूने से बाजार को बनाया गया। चारों कारवां सराय के बीच में अष्टकोणीय चौक था। हर कटरे में गेट थे। दक्षिणी गेट से दखनाई गेट तक यह चारों कटरे ताज के ग्रैंड डिजाइन का हिस्सा थे।

136 दुकानों का था शाही बाजार

ताजमहल के पास दुनिया भर के कारीगर और उनके बनवाए भवन थे, जिसे मुमताजाबाद का नाम दिया गया। दक्षिणी गेट पर 136 हुजरा यानी कमरे थे। ताज के अंदर जिलूखाना में 128 कमरों की तरह ये बने थे। दक्षिणी गेट से सटे दो बाजार सरकार ए पादशाही ने बनाए, जबकि दो इसकी मिरर इमेज यानी जवाब शैली में बने। दिसंबर 1794 में पादरी पीएफ जुवेनल ने अपने दोस्त थॉमस रिंगनिंग के साथ ताजगंज बाजार से आर्म्ड गार्ड खरीदा था। वर्ष 1825 में कर्नल जेम्स स्किनर ने अपनी किताब ‘तशरीह अल अवकाम’ में ताजगंज बाजार में पान बेचते हुए दुकानदार की पेंटिंग दिखाई है, जिसे पंजाबी कलाकार ने बनाया था। 

कई पुस्तकों में जिक्र

गाइड एसोसिएशन के अध्यक्ष शमशुद्दीन ने बताया कि मुगल काल से ब्रिटिश काल तक कई पुस्तकों में ताजगंज बाजार के बारे में बताया गया है। यहां जो दुकानें बनीं, उनसे होने वाली आय और अकबराबाद व नगरचैन की 30 गांव की आय से ताज की देखरेख होती थी। चारों कटरे व्यावसायिक गतिविधियों के लिए थे।

 

कारीगरों के लिए बसाया ताजगंज

पुरातत्वविद डॉ. आरके दीक्षित ताज बनाने वाले 20 हजार कारीगरों के लिए ताजगंज को बसाया गया। उनकी दैनिक जरूरतों की चीजें यहीं बाजार में मिलती थीं। मुगल काल से ही यहां बाजार है, जिसका ब्योरा कई पुस्तकों में है। हर दुकान के आगे बरामदा था, जैसा ताज के जिलूखाना में है।



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