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सीजनल मूड डिसऑर्डर
– फोटो : पिक्साबे
विस्तार
बदलते मौसम में अवसाद से पीड़ित मरीजों की संख्या मानसिक स्वास्थ्य संस्थान व चिकित्सालय में बढ़ने लगी है। इस विशेष मानसिक अवसाद को सीजनल मूड डिसऑर्डर कहते हैं। इसके लक्षण उदासी, चिड़चिड़ापन, सोने और जागने का समय अनियमित होना, थकावट, कमजोरी, भूख कम लगना आदि है।
मानसिक स्वास्थ्य संस्थान व चिकित्सालय के निदेशक प्रो. दिनेश राठौर ने बताया कि समस्या मौसम के बदलाव के साथ बढ़ती है। सूर्य का प्रकाश मस्तिष्क में मैलोटॉनिन नामक हार्मोन न्यूरो ट्रांसमीटर के स्राव को नियंत्रित करता है। जो व्यक्ति के दिन-रात के अनुसार परिवर्तित होने वाली जैविक सक्रियता को प्रभावित करता है। खासतौर पर जब सर्दी के मौसम में धुंध के होने या सूर्य की पृथ्वी से दूरी बढ़ने से सूर्य का प्रकाश कम हो जाता है।
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बाय-लॉजिकल क्लॉक (दिन-रात का जैविक परिवर्तन) प्रभावित होने की वजह से व्यक्ति अवसाद का शिकार हो जाता है। संस्थान में ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ रही है। संस्थान में रोजाना कुल 200 में से करीब 50 मरीज अवसाद से पीड़ित पहुंचते हैं। इससे करीब 5 से 7 सीजनल मूड डिसऑर्डर की वजह से अवसाद में होते हैं।
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बचाव का ये है तरीका
सीजनल मूड डिसऑर्डर से बचाव के लिए पर्याप्त धूप लें, नियमित व्यायाम करें, दिनचर्या नियमित रखें, सोने और जागने का समय अनुशासित रखें। इन उपायों के बाद भी कोई व्यक्ति लगातार अवसाद में रहे तो किसी मनोचिकित्सक से परामर्श लें।
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