[ad_1]
विस्तार
मोहब्बत भी जिंदगी की तरह होती है… हर मोड़ आसान नहीं, हर मोड़ पर खुशी नहीं होती पर जब हम जिंदगी का साथ नहीं छोड़ते तो मोहब्बत का साथ कैसे छोड़ दें… फिल्म मोहब्बतें का यह डायलॉग बहुत प्रसिद्ध हुआ था। फिल्म में चाहे राज को मेघा नहीं मिली, लेकिन प्रेम विवाह करने वाले बहुत से दंपती इसी तरह हर परिस्थिति में अपने हमसफर के साथ खुशहाल जीवन बीता रहे हैं। बुधवार को प्रपोज डे है, साथी को प्रपोज करने के लिए युवा इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं। बाजार भी उपहारों के साथ इस दिन के लिए तैयार हैं।
57 वर्षों में प्यार और ज्यादा बढ़ा
महेश अग्रवाल ने बताया कि सन् 1965 में हमने शादी की थी। मैंने अपनी जीवनसाथी खुद ही पसंद की थी। मेरी पत्नी मीरा मेरी रिश्तेदारी में ही थी। उस जमाने में प्रेम विवाह को लोग पसंद नहीं करते थे। शादी के बाद पिताजी ने हमें घर से निकाल दिया। मैं पत्नी के साथ मुंबई चला गया और एक हलवाई की दुकान पर काम करने लगा। दो साल बाद आगरा आ कर बल्केश्वर में हलवाई की दुकान खोली। मेहनत रंग लाई दुकान भी अच्छी चली। बाद में घरवाले भी मान गए। मेरे तीन बच्चे हैं, मैं अपनी पत्नी के साथ वृद्घा आश्रम में पिछले 5 साल से रह हूं। 70 वर्ष का हो गया हूं, भले ही बच्चों ने साथ छोड़ दिया लेकिन मेरी पत्नी ने हर परिस्थिति में मेरा साथ दिया है।
जाति बंधन तोड़ा, छह साल किया इंतजार
परितोष गुप्ता ने बताया कि हम दोनों की जाति अलग-अलग है। मैं गुप्ता तो वो पंजाबी। घर वाले मान नहीं रहे थे। मैंने भी हार नहीं मानी और उसके परिवारवालों का मनाने के लिए लगा रहा। भगवान ने साथ दिया छह साल के इंतजार के बाद आखिर में घरवाले मान गए। 2022 में हम दोनों की शादी हुई हैं। शादी के बाद यह हमारा पहला वेलेंटाइन डे होगा।
10 साल लगे घरवालों को मनाने में
सुशील ने बताया कि मेरे हमसफर मेरी दीदी के रिश्तेदार हैं। मैं इन्हें पसंद करती हूं और ये मुझे। परिवार वालों को ऐतराज था इनके रंग पर। इनका रंग थोड़ा ज्यादा गहरा है। घरवालों को मनाने में हमें 10 साल लग गए। हमारा प्यार और 10 साल का इंतजार रंग लाया और इसी महीने फरवरी में हमारी शादी है। प्यार सब्र का भी नाम है।
[ad_2]
Source link