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सिमराई गांव के जयवीर सिंह ने 2001 में पुंछ राजौरी में दो आतंकियों को ढेर कर पाक घुसपैठ को नाकाम किया था। 2006 में जम्मू कश्मीर में 3 आतंकियों को ढेर करने और हथियारों का जखीरा बरामद करने पर वीरता पदक मिला था।
इसी तरह बडागांव (बाह) के 85 वर्षीय महावीर सिंह भदौरिया ने 1965 में पाकिस्तान और 67 में चीन से युद्ध लड़ा। जब 1971 में पाकिस्तान से फिर युद्ध हुआ तो वह बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजाद कराने वाली सेना का हिस्सा बने। वह बताते हैं कि दाहिने बांह और पैर में गोली लगने के बाद भी मोर्चे पर डटे रहे। पाक सेना के समर्पण के बाद उन्हें साथियों ने अस्पताल में भर्ती कराया।
बेटा विक्रम और पौत्र दीपक वायुसेना में देश की सेवा कर रहे हैं। 1971 के इस युद्ध में बाह तहसील के 350 जवानों ने शौर्य दिखाया था। इनमें से 88 अकेले रुदमुली गांव के थे।
देशभक्ति की पौध सींच रहे राधेश्याम
खिच्चरपुरा (बाह) के 82 साल के राधेश्याम भदौरिया अब गांव में देशभक्ति की पौध सींच रहे हैं। बताते हैं कि वे पंजाब बार्डर पर वेरीबाला, असफवाला के मोर्चे पर थे। 13 दिन तक चले युद्ध में दुश्मन के 10 बंकर ध्वस्त किए। चार बेटे सतेंद्र सिंह, सुखवीर सिंह सेना से रिटायर हो चुके हैं। तीसरे नंबर के सूबेदार इंद्रेश सिंह पुंछ रजौरी में, चौथे नंबर के कुलदीप डोडा में तैनात हैं।
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