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पलक
– फोटो : अमर उजाला
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आगरा की दिव्यांग बिटिया पलक को उसके ख्वाबों का फलक मिल गया। नेत्रहीन विद्यालय की बजाय अब बिटिया गांव की कन्या पाठशाला में पढ़ेगी। कक्षा सात की जगह बृहस्पतिवार को उसे कक्षा चार में प्रवेश मिल गया। अमर उजाला में खबर छपने के बाद जिलाधिकारी भानु चंद्र गोस्वामी ने बीएसए को भेजकर प्रवेश कराया। मनचाही कक्षा में प्रवेश मिलने पर पलक ने अमर उजाला का थैंक्यू कहा।
रुनकता निवासी धर्मप्रकाश मजदूर हैं। उनके चार बच्चे हैं। दो बड़ी बेटियों की शादी हो गई है। तीसरे नंबर का बेटा प्राइवेट नौकरी करता है। सबसे छोटी बेटी पलक 14 साल की है। जन्म से एक आंख से दिव्यांग पलक कभी स्कूल नहीं गई। गांव में स्थित प्राथमिक विद्यालय द्वितीय में कुछ दिन पढ़ी, लेकिन न यूनिफॉर्म मिली, न किताब-काॅपी व अन्य सुविधाएं।
परिवार का आरोप है कि प्रधानाध्यापक मंजू देवी ने उसे प्रवेश नहीं दिया। बिटिया ने वीडियो के माध्यम से गुहार लगाई। बीएसए ने उम्र अधिक बताते हुए महाकवि सूर स्मारक इंटर कॉलेज, जहां नेत्रहीन बच्चे पढ़ते हैं वहां सातवीं कक्षा में जबरन प्रवेश करा दिया। वह पहली बार में ही सीधे कक्षा सात का पाठ्यक्रम नहीं पढ़ सकती थी। शिक्षा अधिकारियों की मनमानी पर बुधवार को पलक के पिता धर्मप्रकाश ने आपत्ति दर्ज कराई। अमर उजाला ने बृहस्पतिवार के अंक में ‘जो कभी नहीं गई स्कूल, उसका कक्षा 7 में करा दिया प्रवेश’ शीर्षक से खबर प्रकाशित की।
खबर पढ़ते ही जिलाधिकारी भानु चंद्र गोस्वामी ने बीएसए जितेंद्र गोंड को तलब किया। कक्षा चार में उसका प्रवेश कराने के निर्देश दिए। जिसके बाद बीएसए ने नेत्रहीन विद्यालय से निकालकर 24 घंटे में उसका प्रवेश गांव में स्थित प्राथमिक विद्यालय में कक्षा चार में कराया। मनचाही कक्षा में प्रवेश मिलने पर दिव्यांग बिटिया ने कहा, मेरा सपना पूरा हो गया। मैं कक्षा चार में पढ़ना चाहती थीं। मुझे प्रवेश मिल गया। उसके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ रही है। शुक्रवार से बिटिया स्कूल जाने लगेगी।
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