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आगरा। डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय में पहली बार शुरू किए गए पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन रिसर्च (पीजीडीआर) में एक भी प्रवेश नहीं हुए हैं। 15 विषयों में यह पाठ्यक्रम एमफिल की जगह शुरू किया गया। कुछ में आवेदन भी प्राप्त हुए लेकिन जटिलताओं को देखते हुए प्रवेश नहीं लिया गया।
फैकल्टी की आपत्तियों के बाद भी तत्काल प्रभारी कुलपति प्रो. विनय पाठक के जोर देने पर पीजीडीआर पाठ्यक्रम सोशल वर्क, हिंदी, लिंग्विस्टिक, संस्कृत, लाइब्रेरी साइंस, इतिहास, जंतु विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, माइक्रोबायोलॉजी, बायोकेमेस्ट्री, बायोटेक्नोलॉजी, केमेस्ट्री, मैथमेटिक्स, सोशियोलॉजी, सांख्यिकी पाठ्यक्रमों में शुरू किए गए। विज्ञप्ति जारी कर आवेदन मांगे गए। अधिकतर विषयों में आवेदन प्राप्त नहीं हुए। सोशियोलॉजी व कुछ अन्य विषयों में आवेदन मिले भी तो प्रवेश नहीं लिया गया। ऐसे में इन कोर्स का औचित्य फैकल्टी को नहीं नजर आ रहा।
कोर्स शुरू करते समय यह निर्णय लिया गया था कि परास्नातक करने वाले छात्र-छात्राएं पीजीडीआर कर सकेंगे। यह एक वर्ष का कोर्स है। इसे करने के बाद छात्र-छात्राओं को प्री-पीएचडी कोर्स वर्क नहीं करना पड़ेगा। प्रवेश लेने के लिए संस्थानों और विभागों में पहुंचे अभ्यर्थियों ने पूछा कि पीजीडीआर करने के बाद उन्हें पीएचडी में सीधे प्रवेश मिलेगा या नहीं। इस पर उन्हें बताया गया कि पीएचडी की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करनी पड़ेगी। महज कोर्स वर्क करने से छूट मिलेगी। इस पर अभ्यर्थियों ने प्रवेश में रुचि नहीं दिखाई।
प्री-पीएचडी का कोर्स वर्क छह माह का ही है, जबकि पीजीडीआर एक वर्ष का कोर्स है। पीजीडीआर करने के लिए छात्र-छात्राओं को अलग से फीस देनी होगी। जबकि पीएचडी में प्रवेश के लिए एक बार ही फीस देनी पड़ती है। पीजीडीआर करने के बाद छात्र-छात्राओं को कोई फायदा नहीं दिख रहा है।
‘जो कोर्स संचालित किए जा रहे हैं उनका एकेडमिक ऑडिट कराया जाएगा। इसके लिए एकेडमिक ऑडिट कमेटी बनाई गई है। कमेटी की रिपोर्ट के बाद तय किया जाएगा कि कौन सा कोर्स संचालित करने लायक और कौन सा नहीं।’
आगरा। डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय में पहली बार शुरू किए गए पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन रिसर्च (पीजीडीआर) में एक भी प्रवेश नहीं हुए हैं। 15 विषयों में यह पाठ्यक्रम एमफिल की जगह शुरू किया गया। कुछ में आवेदन भी प्राप्त हुए लेकिन जटिलताओं को देखते हुए प्रवेश नहीं लिया गया।
फैकल्टी की आपत्तियों के बाद भी तत्काल प्रभारी कुलपति प्रो. विनय पाठक के जोर देने पर पीजीडीआर पाठ्यक्रम सोशल वर्क, हिंदी, लिंग्विस्टिक, संस्कृत, लाइब्रेरी साइंस, इतिहास, जंतु विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, माइक्रोबायोलॉजी, बायोकेमेस्ट्री, बायोटेक्नोलॉजी, केमेस्ट्री, मैथमेटिक्स, सोशियोलॉजी, सांख्यिकी पाठ्यक्रमों में शुरू किए गए। विज्ञप्ति जारी कर आवेदन मांगे गए। अधिकतर विषयों में आवेदन प्राप्त नहीं हुए। सोशियोलॉजी व कुछ अन्य विषयों में आवेदन मिले भी तो प्रवेश नहीं लिया गया। ऐसे में इन कोर्स का औचित्य फैकल्टी को नहीं नजर आ रहा।
कोर्स शुरू करते समय यह निर्णय लिया गया था कि परास्नातक करने वाले छात्र-छात्राएं पीजीडीआर कर सकेंगे। यह एक वर्ष का कोर्स है। इसे करने के बाद छात्र-छात्राओं को प्री-पीएचडी कोर्स वर्क नहीं करना पड़ेगा। प्रवेश लेने के लिए संस्थानों और विभागों में पहुंचे अभ्यर्थियों ने पूछा कि पीजीडीआर करने के बाद उन्हें पीएचडी में सीधे प्रवेश मिलेगा या नहीं। इस पर उन्हें बताया गया कि पीएचडी की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करनी पड़ेगी। महज कोर्स वर्क करने से छूट मिलेगी। इस पर अभ्यर्थियों ने प्रवेश में रुचि नहीं दिखाई।
प्री-पीएचडी का कोर्स वर्क छह माह का ही है, जबकि पीजीडीआर एक वर्ष का कोर्स है। पीजीडीआर करने के लिए छात्र-छात्राओं को अलग से फीस देनी होगी। जबकि पीएचडी में प्रवेश के लिए एक बार ही फीस देनी पड़ती है। पीजीडीआर करने के बाद छात्र-छात्राओं को कोई फायदा नहीं दिख रहा है।
‘जो कोर्स संचालित किए जा रहे हैं उनका एकेडमिक ऑडिट कराया जाएगा। इसके लिए एकेडमिक ऑडिट कमेटी बनाई गई है। कमेटी की रिपोर्ट के बाद तय किया जाएगा कि कौन सा कोर्स संचालित करने लायक और कौन सा नहीं।’
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