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मुलायम सिंह यादव (फाइल)
– फोटो : अमर उजाला
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कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कहीं जमीन तो कहीं आसमां नहीं मिलता…। निदा फाजली का ये शेर ‘धरतीपुत्र’ मुलायम सिंह पर चरितार्थ होता है। प्रधानमंत्री बनने की उनकी ख्वाहिश अधूरी रह गई। 1996 और 1999 में दो बार दिल्ली की सत्ता में काबिज होते-होते वह दौड़ में पिछड़ गए। उनके अपनों ने ही पत्ता काट दिया। इसकी कसक ताउम्र उन्हें सालती रही।
वर्ष 1996 में 11वीं लोकसभा में बड़े दल के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी को पहली बार सरकार बनाने का मौका मिला। 13 दिन में सरकार गिर गई। वीपी सिंह, ज्योति बसु की चर्चाएं चलीं, लेकिन दोनों ने प्रधानमंत्री बनने से मना कर दिया। वामदल के बड़े नेता किशन सिंह सुरजीत ने मुलायम का प्रस्ताव रखा। उत्तर प्रदेश में सपा के पास 17 सीटें थीं। कांग्रेस व जनता दल बाहर से समर्थन की बात कह रहे थे, लेकिन पलट गए। लालू और शरद यादव दोनों मुलायम के नाम पर सहमत नहीं हुए। एचडी देवगौड़ा संयुक्त मोर्चा से प्रधानमंत्री बने।
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