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टेसू के फूलों से तैयार हो रहे रंग
– फोटो : अमर उजाला
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मथुरा के बरसाना यानि ब्रज की अनोखी लठामार होली, जिसमें कृष्णकालीन परंपरा की झलक दिखाई पड़ती है। होली में प्रयोग होने वाली हर वस्तु आज भी द्वापरकालीन दिखती है। आज भी लठामार होली में श्रीजी मंदिर पर नंदगांव के हुरियारों पर रसायन युक्त रंगों का प्रयोग नहीं किया जाता है। हुरियारों को रंग में सराबोर करने के लिए टेसू के फूलों से तैयार प्राकृतिक रंग बनाया जा रहा है।
लठामार होली की परंपरा बड़ी ही निराली है। हर चीज परंपरा के अनुसार होती है। बात हुरियारिनों की हो चाहे हुरियारों की, दोनों ही द्वापरकाल परंपरा के अनुसार ही चलते हैं। वहीं लट्ठ वहीं ढाल वही पारंपरिक कपड़े सभी कृष्णकालीन परंपरा को जीवंत करते दिखाई पड़ते हैं। लठामार होली के दौरान और इतना ही नहीं वही खड़ी ब्रज भाषा में हुरियारिनों पर अपनी मधुर वाणी से रसकों के पदों पर हुरियारे तीर छोड़ते हैं।
लठामार होली के दौरान होली खेलने में रंग और अबीर-गुलाल भी बरसता है। कही किसी हुरियारिन या हुरियारे को किसी प्रकार की परेशानी न हो इसके लिए भी बरसाना लाडली जी मंदिर के सेवायतों द्वारा विशेष प्रकार का रंग तैयार किया जा रहा है। जिसके लिए टेसू के 10 क्विंटल फूलों का प्रयोग किया जाता है। इसको तैयार करने में 10 दिन लग जाते हैं।
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