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मिर्गी का दौरा
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आगरा में न्यूरोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के अधिवेशन में शुक्रवार को जेपी होटल में इंडियन फेडरेशन ऑफ न्यूरो रिहेबिलिटेशन के संस्थापक अध्यक्ष मुंबई के डॉ. निर्मल सूर्या ने ‘मिर्गी के दौरों का ग्रामीण क्षेत्र में कैसे नियंत्रण किया जाए’ विषय पर विचार व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि मिर्गी के संबंध में समाज में जागरूकता की कमी है। अभी भी 30 फीसदी लोग मिर्गी के दौरे आने पर जूता व प्याज सुंघाते हैं, जबकि यह एक भ्रांति है, इससे कुछ नहीं होता है।
डॉ. निर्मल सूर्या नेशनल हेल्थ मिशन, महाराष्ट्र के साथ मिलकर मिर्गी के मरीजों की जांच व उपचार के लिए 99 शिविर 11 वर्षों में लगा चुके हैं। करीब 34000 मरीजों का उपचार किया है। इसमें करीब 25000 बच्चे रहे। उन्होंने बताया कि देहात क्षेत्र में मिर्गी के मरीज अधिक मिल रहे हैं। वजह यह है कि तमाम महिलाओं का प्रसव अभी भी घरों पर हो रहा है। बच्चों में ऑक्सीजन की कमी से ब्रेन को नुकसान पहुंच रहा है। उससे बच्चों को मिर्गी के दौरे पड़ने लगते हैं। उन्होंने मिर्गी के विभिन्न प्रकारों की जानकारी दी। तेज झटके आने से हाथ से सामान छूट जाना, कक्षा में पढ़ते समय बच्चे का रुक जाना, ऐसी गतिविधियां करना, जिसका अहसास न हो (हथेली को रगड़ना, बार-बार जीभ निकालना) मिर्गी के अलग-अलग प्रकार हैं। उन्होंने कहा कि ब्रेन के लिए पर्याप्त नींद जरूरी है। लगातार काम करने से भी ब्रेन अटैक होता है।
देश में मिर्गी के 1.20 करोड़ मरीज
एसएन मेडिकल कॉलेज के न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. पीके माहेश्वरी ने बताया कि विश्व में मिर्गी के मरीज 5 करोड़ हैं। देश में यह संख्या 1.20 करोड़ के करीब है। बच्चों में लोग बीमारी को छिपाते हैं। यह बड़ी समस्या है। मरीज समय से पहुंचे तो 70 फीसदी को दवाओं से ठीक किया जा सकता है। 20 से 30 फीसदी मरीजों को ही दिक्कत होती है। ऑपरेशन करना पड़ता है। चिकित्सक से परामर्श के बिना मरीज को मिर्गी के दौरे की दवाएं नहीं छोड़नी चाहिए।
मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए जीवनशैली अच्छी रखें
अधिवेशन के आयोजन अध्यक्ष डॉ. आरसी मिश्रा ने कहा कि मस्तिष्क में जटिल नेटवर्क होते हैं, जो शरीर के सामान्य कामकाज के लिए सहायक होते हैं। यह हमारे आसपास की दुनिया को देखने के तरीके को तय करता है और उस पर प्रतिक्रिया करता है। अपने मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए जीवनशैली अच्छी रखनी चाहिए। शारीरिक व्यायाम, उचित आहार, पोषण, चिकित्सा जोखिमों को नियंत्रित करने, पर्याप्त नींद लेने और आराम करने को जीवनशैली में शामिल करना चाहिए। ब्रेन में जब कोई समस्या होती है तो इसका असर हमारे पूरे शरीर पर पड़ सकता है। मरीज को लकवा या कोमा के अलावा शरीर के किसी अंग में विकलांगता आ सकती है।
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108 तकनीकी सत्र व कार्यशालाएं हुईं
आयोजन सचिव व वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉ. अरविंद कुमार अग्रवाल ने बताया कि अधिवेशन में दो दिनों में 108 से अधिक तकनीकी सत्र और कार्यशालाएं हुईं व शोधपत्र पढ़े गए। दूसरे दिन डॉ. एसके गुप्ता, डॉ. अरुण श्रीवास्तव, डॉ. द्वारकानाथ श्रीनिवास, डॉ. अनीता जगेटिया, डॉ. पी. सरत चंद्रा, डॉ. दीपक झा, डॉ. सचिन बोरकर, डॉ. अनीता महादेवन, डॉ. मंजुल त्रिपाठी, डॉ. टोसीकी एंडो, डॉ. सुरेश डंगानी, डॉ. दिलीप पानीकर, डॉ. सुरेश नैयर, डॉ. दलजीत सिंह, डॉ. आरएन साहू, डॉ. विवेक टंडन, डॉ. एन मुथुकुमार, डॉ. सुधीर दुबे, डॉ. आलोक अग्रवाल, डॉ. पटकर सुशील वसंत, डॉ. कार्तिकेयन एम, डॉ. विलसन पी डिसूजा आदि ने व्याख्यान दिए।
मरीज परिवार का हिस्सा बन जाता है
न्यूरोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. वीपी सिंह ने कहा कि एक न्यूरो विशेषज्ञ का प्रशिक्षण बहुत अलग होता है। यह सीखने के बाद भी चलता रहता है। देश में मस्तिष्क के रोगों की जो स्थिति है उसकी वजह से न्यूरो सर्जंस पर भारी दबाव है। उन्हें हर वक्त मरीजों को देखते रहना है। प्रशिक्षण काल में ही अपने आप को इस बात के लिए तैयार कर लेना चाहिए। मरीज विशेषज्ञ के परिवार का हिस्सा बन जाता है। रिश्तेदारों का भरोसा चिकित्सक पर होता है। विशेषज्ञ इन सब में संतुलन नहीं रख पाएंगे तो काम पर असर पड़ेगा।
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