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डिंपल यादव ने पहली बार 2009 में फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर उप चुनाव में ही राजनीति में कदम रखा था। तब अखिलेश यादव फिरोजाबाद और कन्नौज दो जगह से निर्वाचित हुए थे और उन्होंने फिरोजाबाद सीट छोड़ दी थी। डिंपल राजनीति में नई थीं, जिसका खामियाजा भी उन्हें अपनी हार से चुकाना पड़ा। कांग्रेस प्रत्याशी और अभिनेता राज बब्बर ने उन्हें 85343 वोट से हराकर जीत हासिल की।
इसके बाद 2012 में जब अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो फिर कन्नौज लोकसभा सीट भी खाली हो गई। यहां से फिर दोबारा डिंपल यादव मैदान में उतरीं, लेकिन कोई प्रतिद्वंद्वी न होने से उन्होंने निर्विरोध सांसद का ताज हासिल किया। इस बारे में भी तरह-तरह की चर्चाएं हुईं, लेकन जीत तो आखिर जीत थी। इसके बाद डिंपल भी राजनीति की मंझी हुई खिलाड़ी बन चुकी थीं। 2014 में भी लोकसभा चुनाव में कन्नौज सीट से उन्होंने भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक को पटखनी देकर जीत हासिल की।
हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक ने कन्नौज सीट पर उन्हें 12353 वोटों के करीब मुकाबले से शिकस्त दे दी। अब वही डिंपल अपने ससुर और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि मैनपुरी से चुनावी मैदान में हैं। पति की विरासत पर अपनी धाक जमा चुकीं डिंपल अब ससुर की विरासत पर सियासत करेंगी। ये सियासत ही अब मैनपुरी के सपाई दुर्ग का भविष्य तय करेगी।
अखिलेश के लिए भी जंग से कम नहीं है ये उप चुनाव
सपा अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए मैनपुरी का उप चुनाव किसी जंग से कम नहीं है। एक ओर जहां पिता मुलायम सिंह यादव की विरासत मैनपुरी को बचाने की चुनौती है तो वहीं दूसरी तरफ पत्नी डिंपल यादव को साबित करना भी उनके लिए जरूरी है। अखिलेश वर्तमान में करहल विधानसभा सीट से विधायक हैं, जो मैनपुरी लोकसभा सीट का ही एक हिस्सा है। ऐसे में कहीं न कहीं मुलायम की कर्मभूमि का ये चुनाव अखिलेश के लिए भी एक इम्तिहान है।
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