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सोरोंजी के वराह मंदिर में सजाई गई भगवान वराह की प्रतिमा ।
– फोटो : KASGANJ
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सोरोंजी(कासगंज)। हरिपदी गंगा में मार्गशीर्ष एकादशी को लगने वाले आस्था के मेले के पीछे पौराणिक महत्व है। मान्यताओं के अनुसार हिरण्याक्ष के पृथ्वी को रसातल में ले जाने पर भगवान विष्णु ने भगवान वराह के रूप में एकादशी के दिन अवतार लिया था। उन्होंने हिरण्याक्ष का वध कर पृथ्वी का उद्धार किया था। इसके बाद द्वादशी को स्वनिर्मित हरिपदी गंगा में जल समाधि ले ली थी। तभी से यहां मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष एकादशी और द्वादशी को श्रद्धालु गंगा स्नान करते हैं।
भगवान वराह की यह पवित्र भूमि पृथ्वी पुनर्स्थापना का केंद्र है। हर साल मार्गशीर्ष मास में भगवान वराह के निर्वाण के उपलक्ष्य में हरि की पौड़ी कुंड में स्नान और सूकरक्षेत्र की पंचकोसी परिक्रमा करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। वराह पुराण के अनुसार भगवान वराह ने पृथ्वी को हिरण्याक्ष के कब्जे से मुक्त कराकर सूकरक्षेत्र मे स्थापित किया, तब पृथ्वी ने उनसे संवाद किया था कि अब मैं यह जानना चाहती हूं कि ‘कुब्जाम्रक’ क्षेत्र में सबसे श्रेष्ठ एवं पवित्र आचरणीय व्रत और भक्तों को सुख देने वाला इसके अतिरिक्त अन्य तीर्थ कौन सा है? तब श्रीवराह देव ने कहा था, मेरे सभी क्षेत्र परम शुद्ध हैं, फिर भी ‘कोकामुख’, ‘कुब्जाम्रक’ तथा ‘सौकरव’ स्थान (सूकरक्षेत्र) उत्तरोत्तर उत्तम माने जाते हैं। इनमें संपूर्ण प्राणियों को संसार से मुक्त करने के लिए अपार शक्ति है। भागीरथी गंगा के समीप यह वही स्थान है, जहां मैंने तुम्हारा रसातल से उद्धार कर स्थापित किया है। सोरोंजी सूकर क्षेत्र में जल, थल, अंतरिक्ष तीनों में मुक्ति है। यहां पृथ्वी का सबसे प्राचीनतम सतयुग कालीन ‘गृद्धवट’ बटुकनाथ मंदिर में है। संवाद
श्रीराम ने किया था पितरों का पिंडदान
भगवान श्रीराम ने सूकरक्षेत्र में प्रवास कर पितरों का पिंडदान किया था। गोस्वामी तुलसीदास और उनके चचेरे भाई कृष्णमार्गी शाखा के कवि स्वामी नंददास की जन्मभूमि भी यहीं है। गुरु नानक देव, गुरु हरगोविंद सिंह, स्वामी दयानंद सरस्वती, चैतन्य महाप्रभु, बल्लभाचार्य सहित कई ऋषि मुनियों ने इस तीर्थ में प्रवास कर तप किया है।
अकबर से लेकर महाराणा प्रताप तक का रहा यहां से नाता
हिंदी सलाहकार समिति (राजभाषा) नगर विमानन मंत्रालय भारत सरकार के सदस्य प्रोफेसर योगेंद्र मिश्र बताते हैं कि किसी भी देव नदी में अस्थियां नहीं गलती हैं। हरिपदी गंगा में प्रवाहित की गईं अस्थियां 72 घंटे में रेणु रूप में परिवर्तित हो जाती हैं। बादशाह अकबर यहीं से पीने के लिए जल मंगाया करते थे। यह स्थल भगवान बुद्ध और उनके अनुयायियों का ज्ञान क्षेत्र भी रहा है। चालुक्य क्षत्रिय इसी क्षेत्र में चुलुक जलपान कर राजवंश कहलाए। चालुक्य वंश की राजपताकों में गंगा-वराह का चित्र अंकित था। इस क्षेत्र से तक्षशिला तक और गंगा में नावों से कोलकाता तक व्यापार होता था। मेवाड़ नरेश महाराणा प्रताप ने यहां तुलादान किया था।
सोरोंजी(कासगंज)। हरिपदी गंगा में मार्गशीर्ष एकादशी को लगने वाले आस्था के मेले के पीछे पौराणिक महत्व है। मान्यताओं के अनुसार हिरण्याक्ष के पृथ्वी को रसातल में ले जाने पर भगवान विष्णु ने भगवान वराह के रूप में एकादशी के दिन अवतार लिया था। उन्होंने हिरण्याक्ष का वध कर पृथ्वी का उद्धार किया था। इसके बाद द्वादशी को स्वनिर्मित हरिपदी गंगा में जल समाधि ले ली थी। तभी से यहां मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष एकादशी और द्वादशी को श्रद्धालु गंगा स्नान करते हैं।
भगवान वराह की यह पवित्र भूमि पृथ्वी पुनर्स्थापना का केंद्र है। हर साल मार्गशीर्ष मास में भगवान वराह के निर्वाण के उपलक्ष्य में हरि की पौड़ी कुंड में स्नान और सूकरक्षेत्र की पंचकोसी परिक्रमा करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। वराह पुराण के अनुसार भगवान वराह ने पृथ्वी को हिरण्याक्ष के कब्जे से मुक्त कराकर सूकरक्षेत्र मे स्थापित किया, तब पृथ्वी ने उनसे संवाद किया था कि अब मैं यह जानना चाहती हूं कि ‘कुब्जाम्रक’ क्षेत्र में सबसे श्रेष्ठ एवं पवित्र आचरणीय व्रत और भक्तों को सुख देने वाला इसके अतिरिक्त अन्य तीर्थ कौन सा है? तब श्रीवराह देव ने कहा था, मेरे सभी क्षेत्र परम शुद्ध हैं, फिर भी ‘कोकामुख’, ‘कुब्जाम्रक’ तथा ‘सौकरव’ स्थान (सूकरक्षेत्र) उत्तरोत्तर उत्तम माने जाते हैं। इनमें संपूर्ण प्राणियों को संसार से मुक्त करने के लिए अपार शक्ति है। भागीरथी गंगा के समीप यह वही स्थान है, जहां मैंने तुम्हारा रसातल से उद्धार कर स्थापित किया है। सोरोंजी सूकर क्षेत्र में जल, थल, अंतरिक्ष तीनों में मुक्ति है। यहां पृथ्वी का सबसे प्राचीनतम सतयुग कालीन ‘गृद्धवट’ बटुकनाथ मंदिर में है। संवाद
श्रीराम ने किया था पितरों का पिंडदान
भगवान श्रीराम ने सूकरक्षेत्र में प्रवास कर पितरों का पिंडदान किया था। गोस्वामी तुलसीदास और उनके चचेरे भाई कृष्णमार्गी शाखा के कवि स्वामी नंददास की जन्मभूमि भी यहीं है। गुरु नानक देव, गुरु हरगोविंद सिंह, स्वामी दयानंद सरस्वती, चैतन्य महाप्रभु, बल्लभाचार्य सहित कई ऋषि मुनियों ने इस तीर्थ में प्रवास कर तप किया है।
अकबर से लेकर महाराणा प्रताप तक का रहा यहां से नाता
हिंदी सलाहकार समिति (राजभाषा) नगर विमानन मंत्रालय भारत सरकार के सदस्य प्रोफेसर योगेंद्र मिश्र बताते हैं कि किसी भी देव नदी में अस्थियां नहीं गलती हैं। हरिपदी गंगा में प्रवाहित की गईं अस्थियां 72 घंटे में रेणु रूप में परिवर्तित हो जाती हैं। बादशाह अकबर यहीं से पीने के लिए जल मंगाया करते थे। यह स्थल भगवान बुद्ध और उनके अनुयायियों का ज्ञान क्षेत्र भी रहा है। चालुक्य क्षत्रिय इसी क्षेत्र में चुलुक जलपान कर राजवंश कहलाए। चालुक्य वंश की राजपताकों में गंगा-वराह का चित्र अंकित था। इस क्षेत्र से तक्षशिला तक और गंगा में नावों से कोलकाता तक व्यापार होता था। मेवाड़ नरेश महाराणा प्रताप ने यहां तुलादान किया था।
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