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रामवृक्ष यादव (फाइल फोटो)
– फोटो : अमर उजाला
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मथुरा में 2 जून 2016 को जवाहर बाग कांड में कितने लोग मारे गए, इसका जवाब सीबीआई की रिपोर्ट में आने की संभावना है। हालांकि जिस वक्त सीबीआई ने जवाहर बाग कांड की तहकीकात प्रारंभ की, उस समय तक कोई सबूत था न ही जवाहर बाग में वारदात के समय मौजूद लोगों का विवरण। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, तत्कालीन एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और थानाध्यक्ष संतोष यादव की मौत के बाद पुलिस एक्शन में आ गई। इसके बाद जवाहर बाग में मौजूद करीब दो हजार लोगों में भगदड़ मच गर्ई। जो वहां से भाग सका, वह भाग लिया। बाकी लोग वहां बड़ी संख्या में रखे सिलिंडरों के विस्फोट से लगी आग की चपेट में आ गए और मौत हो गई। जवाहर बाग की घटना में मारे गए या लापता हुए ऐसे लोगों के परिजन पुलिस व प्रशासन के अफसरों के चक्कर आज भी लगा रहे हैं। अभियुक्तों के केस की पैरवी कर रहे अधिवक्ता के अनुसार, ऐसे लोगों की संख्या 25 से अधिक है।
दरअसल, रामवृक्ष यादव ने जवाहर बाग में दो वर्ष में ऐसे लोगों को एकत्रित कर लिया था, जिनका जीवन स्तर केवल मजदूरी पर आधारित था। वह इन लोगों की इतनी घेराबंदी करके रखता था कि वह लोग वहां से जाने की सोचते भी नहीं थे और यदि कोई घर जाने की कहता था तो उसके उस परिजन को भी जवाहर बाग में ही बुला लेता था। माना जा रहा है कि जवाहर बाग हिंसा में मरने वालों की संख्या 29 से अधिक है। कई तो धधकते शोलों की चपेट में आ गए थे। कुछ लोगों के परिजन ने अधिवक्ता एलके गौतम के माध्यम से पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को लिखकर दिया है और आशंका व्यक्त की है कि जवाहर बाग की हिंसा में उनके परिजन भी मर गए। अधिवक्ता ने बताया कि करीब दो दर्जन से अधिक के नामों की सूची उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों को दी थी परंतु वहां पर परिवार के परिवार आग की भेंट चढ़ गए। जिनके बारे में सिर्फ रामवृक्ष यादव ही जानता था। पुलिस के डर के कारण उन लोगों ने यहां आना बंद कर दिया।
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वारदात के बाद पुलिस की भूमिका पर भी उठे थे सवाल
अभियुक्तों की पैरवी कर रहे अधिवक्ता एलके गौतम ने बताया कि माना कि रामवृक्ष यादव और उसके साथियों ने पुलिस अधिकारियों को निशाना बना लिया था, परंतु कानून का पाठ पढ़ाने वालों ने कानून को अपने हाथ में कैसे ले लिया। जिम्मेदार पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों ने हिंसा रोकने के लिए प्रत्यक्ष में कोई काम क्योें नहीं किया। जिससे हिंसा को रोका जा सकता था और लोगों की जान बचाई जा सकती थी।
मलबा बता सकता था वारदात की गहराई
इस वारदात में यदि पुलिस शामिल नहीं होती तब शायद यही पुलिस जवाहर बाग से रात भर में हटाए गए वारदात के मलबे में से मृतकों की संख्या को खोज निकालती। अधिवक्ता एलके गौतम का कहना है कि सीबीआई की जांच यदि ठीक ढंग से होगी तो मरने वालों की संख्या अवश्य स्पष्ट होगी। मालूम हो कि 24 नवंबर को सीबीआई हाईकोर्ट में चार्जशीट दाखिल करने वाली है।
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