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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मद्देनजर नगर में सुबह से ही भक्तों के आगमन का सिलसिला शुरू हो गया था। ऐसा लग रहा था मानों नगर की हर गली बांकेबिहारी मंदिर की ओर जा रही थी। बच्चे, बुजुर्ग, महिलाओं के दल ठाकुरजी के जयकारे लगाते हुए आगे बढ़ रहे थे। मंदिर के आसपास की हर गली खचाखच भरी थी। प्रेम मंदिर, इस्कॉन मंदिर, सप्त देवालय में भी भक्तों के उत्साह का यही आलम था। मंदिरों को आकर्षक विद्युत सजावटों, सुगंधित पुष्पों और लतापताओं से सजाया गया। हालांकि मुख्य आकर्षण का केंद्र बांकेबिहारी मंदिर रहा।
बांकेबिहारी मंदिर के गर्भगृह में मध्य रात्रि 12 बजे सेवायत गोस्वामियों ने विधिविधान पूर्वक अपने आराध्य का बंद पटों के बीच महाभिषेक किया। इसके करीब डेढ घंटे बाद पट खोले गए। चांदी की पालकी में विराजमान ठाकुर बांकेबिहारी और उनके दोनों ओर चांदी जड़ित सुसज्जित गोपियोंं ने देश-विदेश से आए श्रद्धालुओं को दर्शन दिए। रात 1.55 बजे मंगला आरती हुई। इस दौरान मंदिर परिसर सेवायत परिवार, उनके यजमान और श्रद्धालुओं से खचाखच भर गया। करीब आठ मिनट की मंगला आरती के बाद बांकेबिहारी के लिए तैयार किया गया चरणामृत सेवायत गोस्वामी द्वारा भक्तों पर बरसाया गया। रात दो बजे से प्रात: साढे पांच बजे तक ठाकुरजी के जन्म के दर्शन के लिए पट खुले रहे।
मिगी पाग और धनिया की पंजीरी का लगाया भोग
बांकेबिहारी मंदिर में मंगला आरती के बाद मंदिर के गोस्वामी समाज की महिलाएं और गोस्वामीजन घर पर बने मिगी पाग, धनिया की पंजीरी और मोहन भोग चांदी के थालों में सजाकर मंदिर लाए और कन्हैया का भोग लगाया। इस दौरान गोस्वामीजनों ने मदिरों में अपने लाड़ले ठाकुर के जन्म की खुशी में पदों का सस्वर गायन किया, जिसे सुन श्रद्धालु भक्ति रस में सराबोर हो गए।
नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की…
मंदिर के सेवायत आनंद गोस्वामी ने बताया कि परंपरा के अनुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर समय-समय पर बाल भोग, शृंगारभोग, राजभोग, उत्थान भोग, शयन लगाए गए। इसके बाद प्रभु के जन्मोत्सव में शामिल होने वाले भक्तोें को मोहन भोग का वितरण किया गया। जगह-जगह नंद के आनन्द भयो जय कन्हैया लाल की बोल मुखर हो गए।
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