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– फोटो : Amar ujala
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दिवाली में कुछ ही दिन शेष बचे हैं। दीपों के इस पर्व को लोग उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं, लेकिन इस बार बारिश ने कुंभकारों के अरमानों को धो दिया है। लागत बढ़ने से दीपक दोगुने महंगे हो गए हैं। कम समय होने की वजह से कारीगर के वल शहर का ऑर्डर ले रहे हैं।
दिवाली में कम समय होने की वजह से कुम्हार चाक पर दिनरात एक कर ऑर्डरों को पूरा करने में जुटे हुए हैं। चाक पर दीपक बनाते रमेश चंद्र प्रजापति बताते हैं कि इस बार दीपक दोगुने महंगे हो गए हैं। इसके पीछे लागत का ढ़ना है। रमेश ने बताया कि पहले जहां मिट्टी की एक ट्रॉली 700 से 800 रुपये में आ जाती थी, वही अब 3000 रुपये की हो गई है। इसके साथ ही पहले जो कंडे 4 से 5 रुपये किलो मिलते थे वो अब 20 से 25 रुपये किलो मिल रहे हैं। बारिश के कारण सीले हुए कंडों की वजह से इस बार लकड़ी भी लगानी पड़ रही है। ऐसे में दीपों पर महंगाई की मार पड़ना लाजिमी है।
ईको फ्रेंडली होते हैं दीपक
छत्रपाल प्रजापति बताते हैं कि चीनी झालरों और मोमबत्ती के चलते दीपकों की बिक्री कम हो गई थी। पिछले कुछ समय से लोगों की सोच में परिवर्तन हुआ है। मिट्टी से निर्मित दीपक, मूर्तियां, बर्तन, खिलौन आदि ईको फ्रेंडली होते हैं। इसकी बनावट, रंगाई व पकाने में किसी तरह के केमिकल का प्रयोग नहीं होता है। दीये पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। इस कारण मिट्टी से निर्मित खिलौने, दीपक, सुराही, बर्तन आदि की मांग बढ़ी है।
दीपों का धार्मिक महत्व
हिंदू मान्यता के मुताबिक मिट्टी को मंगल ग्रह का प्रतीक माना जाता है। मंगल मनुष्य के साहस और पराक्रम में वृद्धि करता है, जबकि तेल शनि का प्रतीक माना जाता है। शनि का न्याय का देवता माना जाता है। मान्यता है कि मिट्टी का दीपक प्रज्वलित करने से मंगल और शनि की कृपा होती है।
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