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एडीएम प्रशासन ने की कार्रवाई
– फोटो : अमर उजाला
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आगरा के एत्मादपुर के गांव नगला खरगा और धौर्रा में आतिशबाजी के चार लाइसेंस हैं। इस बार इन लाइसेंस को नवीनीकरण नहीं किया गया है। दोनों गांव के खेतों में पटाखे तैयार किए जाते हैं। इनका घरों में भंडारण किया जाता है। आगरा ही नहीं आसपास के जिलों में इनकी सप्लाई होती है। 13 साल में 20 हादसों में 36 लोगों की जान पटाखे ले चुके हैं।
मुरैना में बृहस्पतिवार को पटाखों के गोदाम में धमाका हुआ था। इसमें चार लोगों की जान चली गई। आगरा में भी आतिशबाजी बनाते और गोदाम में धमाके हो चुके हैं। एत्मादपुर के नगला खरगा और धौर्रा के देशी पटाखे देहात और शहर के जिलों में सप्लाई होती है। वर्ष 2003 में थाना एत्मादपुर पुलिस ने अवैध आतिशबाजी पकड़ी थी। इसे थाने के एक कमरे में लाकर रखा गया था। पुलिसकर्मियों ने आतिशबाजी पर पानी डाला था। गैस बनने से धमाका हो गया था। थाने की छत उड़ गई थी। इसमें चाय लेकर आए युवक और एक पुलिसकर्मी की जान चली गई थी। धमाका काफी जबर्दस्त था। आसपास के लोग भी दहशत में आ गए थे।
यह हो चुकी हैं घटनाएं
– वर्ष 2003 में जब्त पटाखों में एत्मादपुर थाने में हादसा दो की मौत।
– वर्ष 2003 में ही धौर्रा में पटाखे बनाने के दौरान हादसे में एक की मौत।
– वर्ष 2004 में धौर्रा से आतिशबाजी लेकर जाते समय जवाहर पुल पर वाहन में धमाका, एक की मौत।
– वर्ष 2004 में ही धौर्रा से पटाखे ले जाते समय टेंपो में हादसा, दो की मौत।
– वर्ष 2005 में धौर्रा में गोदाम में में धमाका हुआ, इसमें तीन की मौत।
– वर्ष 2006 में नगला खरगा में घर में आतिशबाजी बनाते समय धमाका, तीन की मौत।
– वर्ष 2007 में नगला खरगा में घर के बाहर धमाका, पांच की मौत।
– वर्ष 2009 में नगला खरगा में आतिशबाजी मेें धमाके में पति पत्नी की मौत।
– वर्ष 2010 में गांव धौर्रा में धमाके में दो लोगों की मौत हुई।
– वर्ष 2011 में पटाखे ले जाते समय टेंपो में कुबेरपुर पर धमाके में दो की मौत।
– वर्ष 2015 में भागूपुर के पास टेंपो में हादसे में दो की मौत।
– वर्ष 2016 में स्कूटर से पटाखे ले जाते समय जगदीशपुरा के पास दो की मौत।
शादी से लेकर रामलीला में होती है मांग
एत्मादपुर के दो गांव में बनने वाले देशी पटाखों की मांग दिवाली पर ही नहीं, सालभर होती है। आगरा के अलावा मथुरा, फिरोजाबाद, हाथरस, अलीगढ़ और एटा के ग्रामीण इलाकों तक में है। हर साल बड़ी संख्या में दुकानदार आते हैं। चोरी छिपे आतिशबाजी को बेचा जाते है। यह काम 50 साल से दोनों गांव में चल रहा है। कई लोगों की आजीविका का यह एकमात्र साधन भी है। पूर्व में 13 लाइसेंस धारक हुआ करते थे, लेकिन अब चार ही लाइसेंस धारक बचे हैं। असुरक्षित तरीके से निर्माण, भंडारण और ले जाने से हादसे होते हैं। नगला खरगा और गांव धौर्रा में बने पटाखों की सबसे ज्यादा मांग शादी और पार्टी में होती है। यहां के आतिशबाजी ठेके पर की जाती है। इसके साथ ही रामलीला में भी आतिशबाज प्रदर्शन करते हैं।
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