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इसके बाद प्रीति के परिवार वालों ने काफी कानूनी कार्रवाई की। वह पूरी तरह इस शादी के खिलाफ थे। हालांकि इस कानूनी लड़ाई में जितेंद्र और प्रीति की जीत हुई और साल भर बाद आकर गांव में रहने लगे।
इस बीच जितेंद्र के पिता की मौत हो गई। जिसके बाद जितेंद्र ने बैल्डिंग का अपना अलग काम डाल लिया। तीन साल पहले दोनों को पुत्र हुआ तो उनकी खुशियां कई गुना बढ़ गई थीं। भविष्य को लेकर तमाम सपने वो लोग सजाए हुए थे। लेकिन किसे पता था कि उनका और उनके सपनों का इतनी बेरहमी से कत्ल कर दिया जाएगा।
अपनी पढ़ाई छोड़ी, पत्नी बनी प्रेमिका को पढ़ाता रहा जितेंद्र
यूं तो जितेंद्र पढ़ने-लिखने में होनहार था। लेकिन प्रेम विवाह के बाद हालात ऐसे बने कि पढ़ाई छूट गई। इंटरमीडिएट करने के बाद उसे परिवार चलाने के लिए रोजगार में लगना पड़ा। लेकिन पत्नी को वह पढ़ाता रहा। दोनों एक-दूसरे के संपर्क में इंटर की पढ़ाई के दौरान आए। इंटर होने के बाद दोनों ने प्रेमविवाह कर लिया। इच्छा तो जितेंद्र की और आगे पढ़ने की थी। लेकिन परिजनों के विरोध के चलते एक साल घर से दूर रहना पड़ा। लौटकर आया तो परिवार की जिम्मेदारी कंधों पर थी।
ऐसे में पढ़ाई भला कैसे हो पाती? अपनी इच्छाओं का गला घोंट लिया और काम में जुट गया। लेकिन तय किया कि खुद भले ही नहीं पढ़ पा रहा, पत्नी की पढ़ाई बंद नहीं होने देगा। मारहरा के एक डिग्री कॉलेज में प्रीति को बीएससी में प्रवेश दिलाया। यह उसका बीसससी का अंतिम वर्ष था। जिसकी परीक्षा और परिणाम से पहले ही प्रीति की दुनिया छूट गई।
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