Saturday, January 4, 2025
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Desilting In Yamuna Can Remove Stains From Taj

by amitsagar
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Agra News यमुना में डीसिङ्क्षल्टग से मिट सकते हैं ताज के दाग



By: Inextlive | Updated Date: Thu, 25 Apr 2024 00:51:12 (IST)




आगरा. (ब्यूरो ) ताज को दाग से मुक्ति दिलाने के लिए जरूरी है कि यमुना की डीसिल्टिंग की जाए. एएसआई भी इसकी सिफारिश कर चुका है. जिससे मॉन्यूमेंट्स को गोल्डीकाइरोनोमस से सेफ किया जा सके. यह कीड़े यमुना में प्रदूषण की स्थिति बताने वाले बायो-इंडीकेटर हैं. यमुना में पानी का बहाव कम होने और गंदगी अधिक होने पर कीड़े पनपते हैं. प्रदूषित पानी में लगी काई उनके लिए भोजन का काम करती है. ताजमहल की सतह पर यह गंदगी छोड़ता है, जिससे हरे व गहरे भूरे रंग के धब्बे लगते हैं.

इस स्थिति में दिखती है कीड़ों की गतिविधि
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रसायन शाखा ने वकील केसी जैन को सूचना का अधिकार (आरटीआई) में यह जानकारी उपलब्ध कराई है। रसायन शाखा ने बताया है कि वर्ष 2015 से ताजमहल पर यह दाग नजर आ रहे हैं। पिछले वर्ष स्मारक के उत्तरी भाग के कुछ हिस्से में संगमरमरी सतह पर कीड़ों के कारण लगे दाग अक्टूबर-नवंबर में वैज्ञानिक तरीके से साफ किए गए थे। यह दाग मुख्यत: वर्षा के बाद सितंबर-अक्टूबर में लगते हैं। कीड़ों की गतिविधि 25 से 28 डिग्री सेल्सियस तापमान होने, यमुना में जलस्तर कम होने, किनारों पर पानी रुकने पर अधिक दिखाई देती है।

की गई थी डीसिल्टिंग की सिफारिश
वर्षा में जल स्तर बढऩे और पानी का बहाव होने से प्रदूषित पानी किनारों पर नहीं रुकता है, जिससे कीड़ों का प्रजनन नहीं होता है। एएसआई ने केसी जैन को वर्ष 2016 में एडीएम सिटी, अपर नगर आयुक्त, ङ्क्षसचाई विभाग के अधिशासी अभियंता, क्षेत्रीय पर्यटक अधिकारी और अधीक्षण पुरातत्व रसायनज्ञ की अध्यक्षता वाली संयुक्त समिति की रिपोर्ट भी उपलब्ध कराई है। इसमें नदी में अत्यधिक गंदगी होने का हवाला देकर नियमित डीसिङ्क्षल्टग का सुझाव दिया गया था। वर्ष 2020 में भी रसायन शाखा के तत्कालीन अधीक्षण पुरातत्व रसायनज्ञ डॉ। एमके भटनागर ने अपनी रिपोर्ट में डीसिङ्क्षल्टग की सिफारिश की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश
वकील केसी जैन ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका पर यमुना में डीसिङ्क्षल्टग का आदेश दिया है। एएसआई की रसायन शाखा भी डीसिङ्क्षल्टग की सिफारिश कर चुकी है। इससे ताजमहल व अन्य स्मारकों को यमुना की गंदगी में पनपने वाले कीड़े गोल्डीकाइरोनोमस से मुक्ति मिलेगी। यमुना में नियमित सफाई और दलदल की स्थिति पैदा नहीं हो, इसके लिए संबंधित विभागों को जिम्मेदारी निभानी होगी।

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एनजीटी ने पूछा था, पी सकते हैं यमुना का पानी

– नगर निगम ने अपनी रिपोर्ट में यमुना जल में शून्य दर्शा दिया था बैक्टीरिया
– डॉ। संजय कुलश्रेष्ठ ने सीपीसीबी की रिपोर्ट का हवाला देकर उठाए थे सवाल

आगरा। यमुना में सीवर की गंदगी डालने के कारण मछलियों के मरने और प्रदूषण फैलाने पर आगरा नगर निगम पर 58.39 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने डॉ। संजय कुलश्रेष्ठ की याचिका पर यह आदेश जारी किया है। मथुरा नगर निगम पर भी यमुना में प्रदूषण फैलाने पर 7.20 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। इसे तीन माह में यूपीपीसीबी (उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) पर जमा करना होगा। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में शहर के 43 स्थानों से लिए गए यमुना जल के सैंपल की जांच रिपोर्ट में बैक्टीरिया (फीकल कालिफार्म) को शून्य दर्शा दिया था। याची डॉ। संजय कुलश्रेष्ठ ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए नगर निगम की रिपोर्ट को फर्जी करार दिया था। इसे एनजीटी ने गंभीरता से लिया था। अधिकारियों से पूछा था कि क्या वह यमुना का पानी पी सकते हैं? इस पर अधिकारी जवाब नहीं दे सके थे।

वर्ष 2022 में दायर की थी याचिका
दिल्ली गेट के रहने वाले पीडियाट्रिक सर्जन डॉ। संजय कुलश्रेष्ठ ने यमुना की दुर्दशा को लेकर वर्ष 2022 में एनजीटी में याचिका दायर की थी। उन्होंने मामले में स्वयं पैरवी की। मामले में उप्र सरकार, शहरी विकास मंत्रालय, भूविज्ञान व खनन मंत्रालय और केंद्र सरकार के जल संसाधन व नदी विकास मंत्रालय को प्रतिवादी बनाया गया था। उन्होंने अपनी याचिका में यमुना के अत्यधिक प्रदूषित होने और डिजॉल्व आक्सीजन कम होने की वजह से कई बार मछलियों के मरने और नदी का पर्यावरणीय संतुलन प्रभावित होने की बात कही थी। नदी में 61 नालों से अशोधित पानी पहुंचने से गंदगी जमा होने और उसमें पनप रहे कीड़े गोल्डीकाइरोनोमस की बात उन्होंने उठाई थी। इसके साथ ही सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) पर भी सवाल उठाए थे। एनजीटी के आदेश पर नगर आयुक्त ने पिछले वर्ष 22 अगस्त को 43 स्थानों (नालों व यमुना) से लिए गए पानी के सैंपल की रिपोर्ट जमा की थी। इस पर सवाल उठे थे। पांच दिसंबर को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने रिपोर्ट दी थी। इसमें उसने बताया था कि कोई भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) मानकों को प्राप्त नहीं कर रहा है। छह दिसंबर को उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) और शहरी विकास मंत्रालय ने रिपोर्ट जमा की थी। यूपीपीसीबी ने अपनी रिपोर्ट में सीपीसीबी के तथ्यों को ही दोहराया था।

आगरा में सीवेज की स्थिति
-शहर में 306 एमएलडी सीवेज उत्पन्न होता है.
-एसटीपी की क्षमता 220 एमएलडी की है.
-175 एमएलडी सीवेज ही शोधित हो रहा है.
-131 एमएलडी सीवेज सीधे यमुना में जा रहा है.

नालों की स्थिति
-यमुना में 91 नाले गिरते हैं।
-21 नाले टैप और आठ आंशिक टैप हैं।
-61 नाले सीधे यमुना में गिर रहे हैं।
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एनजीटी का आदेश ठीक है। अधिकारियों व विभागों को अपनी जिम्मेदारी ढंग से निभानी चाहिए। यमुना में गिरने वाले सभी नाले टैप किए जाएं। यदि नाले टैप नहीं हो सकते हैं तो उनके पानी को एसटीपी तक लाया जाए। एसटीपी अच्छी तरह काम करें। एसटीपी से शोधित पानी नदी में नहीं छोड़ा जाए। इसका उपयोग कृषि, छिड़काव व अन्य कार्यों में किया जाए। जुर्माना विभाग अदा करेगा। बेहतर होगा कि अधिकारियों से जुर्माने की राशि की भरपाई करते हुए उन्हें जवाबदेह बनाया जाए।
-डॉ। संजय कुलश्रेष्ठ, पीडियाट्रिक सर्जन

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