[ad_1]
इस मंगला आरती का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि सुबह-सुबह शहरवासी अपने दिन की शुरुआत राजाधिराज के दर्शन से करते हैं। ऐसे हजारों श्रद्धालु हैं, जो वर्षों से नियमित मंगला आरती के दर्शन कर रहे हैं। चाहे वह व्यापारी हों, नौकरीपेशा हों, विद्यार्थी हों या फिर महिलाएं। सुबह नहा-धोकर पहुंच जाते हैं मंदिर की चौखट पर और शीश झुकाकर, माथा टेककर हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं अपने आराध्य की एक झलक पाने के लिए।
जैसे ही मंगला आरती शुरू होती है सभी अपने दोनों हाथ ऊपर उठाकर जयघोष करने लगते हैं। अपने ठाकुरजी को रिझाने के लिए कोई भावुक हो कर आंसू बहाता है तो कोई ध्यानमग्न होकर उनकी आराधना में लीन हो जाता है। दर्शन-पूजन के बाद सभी अपने-अपने कार्यों में जुट जाते हैं। कोई अपना प्रतिष्ठित खोलता है तो कोई अपनी ड्यूटी पर जाने की तैयारी में लग जाता है।
दर्शन के बाद जलेबी-कचौड़ी का नाश्ता
द्वारिकाधीश मंदिर में दर्शन-पूजन के बाद जलेबी-कचौड़ी का नाश्ता करना भी नहीं भूलते हैं। होली गेट से द्वारिकाधीश मंदिर तक और यमुना मइया के किनारे वाले रास्ते पर अनगिनत बेढ़ई-कचौड़ी और जलेबी आदि की दुकानें हैं, जहां सुबह-सुबह नाश्ता करने वालों की भीड़ लगी रहती है। दो-दो कचौड़ी या बेढ़ई और सौ ग्राम जलेबी खाना शायद ही कोई भूल पाए।
यमुना के तीरे बंसी बजे धीरे-धीरे
ज्यादातर श्रद्धालु मंदिर में दर्शन करने के बाद यमुना मइया का आशीर्वाद लेना भी नहीं भूलते हैं। अपने घरों से चुगा-दाना लाकर जलचरों को आओ…आओ कहकर बुलाते हैं और उन्हें दोनों हाथों से चुगाते हैं। गाय और बंदरों के लिए भी तमाम श्रद्धालु अपने घरों से खाने का इंतजाम करके लाते हैं।
[ad_2]
Source link