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दुर्लभ प्रजाति के कछुआ
– फोटो : अमर उजाला
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प्रकृति प्रेमियों के लिए अच्छी खबर है। यमुना नदी का पानी साफ हो गया है। यह बात यमुना पर किए गए सर्वे की रिपोर्ट में सामने आई है। यमुना में अति संकटग्रस्त प्रजाति के चित्रा इंडिका और बटागुर ढोंगोका सहित छह प्रजाति के कछुए मिले हैं। वन विभाग ब्रीडिंग सीजन में इनके संरक्षण का विशेष अभियान चलाएगा।
आगरा वन क्षेत्र और टर्टल सर्वाइवल एलायंस (टीएसए) ने आगरा से इटावा तक यमुना नदी के 250 किलोमीटर क्षेत्र में जलीय जीवों का अध्ययन किया। अक्तूबर से दिसंबर तक के सर्वेक्षण में चौंकाने वाले नतीजे आए। आमतौर पर कछुओं को साफ पानी में रहने वाला जीव माना जाता है। यमुना में प्रदूषण की बात किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में 6 प्रजाति के कछुओं का मिलना पर्यावरण के लिहाज से अच्छी खबर है।
बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डेवलपमेंट सोसाइटी के डॉ. केपी सिंह कहते हैं कि यमुना में जिन स्थानों पर ये कछुए पाए गए हैं, निश्चित ही वहां पानी को साफ रखने वाली मछलियों समेत जलीय वनस्पति आदि होगी।
प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी आदर्श कुमार बताते हैं कि आगरा में बाह और फतेहाबाद में कुछ स्थान चिह्नित किए हैं। इनकी ब्रीडिंग होगी तब अंडों को सुरक्षित रखने के लिए विभाग बाड़ आदि बनाएगा। इसके बाद अंडों को अस्थायी हैचरी में शिफ्ट किया जाएगा।
पर्यावरण कार्यकर्ता अंकुश दबे बताते हैं कि टीएसए के साथ काम के दौरान साल 2015 में ढोर और साल प्रजाति के 25 किलो से ज्यादा वजन के कछुओं की टैगिंग की जानी थी। तब भी मात्र 2 या 3 कछुए इस वजन के मिले थे। जबकि 30-40 साल पहले 100-100 किलो के कछुए नजर आते थे।
ये प्रजातियां पाई गईं
बटागुर ढोंगोका : इस प्रजाति के कछुए सिर्फ साफ पानी में रहते हैं। कछुओं की यह प्रजाति संकटग्रस्त श्रेणी में है। खास बात है कि इनकी पीठ पर मुलायम कवच होता है। विलुप्त होने की कगार पर आ चुके इन कछुओं का यमुना नदी में मिलना किसी अजूबे से कम नहीं। देश की चुनिंदा नदियों में इनकी आबादी पाई जाती है।
हर्डेला थुरजी : यह भी मीठे और साफ पानी में रहने वाली कछुए की संकटग्रस्त श्रेणी की प्रजाति है। इसमें मादा कछुआ, नर की तुलना में तीन गुना तक आकार में बड़ी हो सकती है। ये शाकाहारी प्रजाति के कछुए होते हैं, जो मुख्यत: नदियों की सफाई का काम करते हैं। इनका शिकार मांस के लिए किया जाता है।
चित्रा इंडिका : नेरो हैडेड सॉफ्ट शेल टर्टल या सीम के नाम से जाना जाता है। जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, यह भी साफ्ट शेल प्रजाति का कछुआ है।
इंडियन फ्लैप शेल टर्टल : यह भी साफ और ताजा जल में रहने वाले कछुओं के शरीर पर कवच के नीचे की ओर फ्लैप होता है। यह कवच के अंदर शरीर करने के बाद कछुए के अंगों को ढक लेता है।
इंडियन टेंट टर्टल : कछुओं की यह प्रजाति प्रकृति के स्वच्छता कर्मी है। ये काई और शैवाल का भोजन करते हैं और पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने में सहायक होते हैं।
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