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सोरोंजी। तीर्थनगरी स्थित सीताराम जी मंदिर 600 वर्षों से घंटों और आरती की गूंज से अछूता है। मुगलों की बर्बरता की कहानी कह रहे इस मंदिर को आज तक अपने पुनरुद्धार का इंतजार है। फिलहाल पुरातत्व विभाग के संरक्षण के अधीन इस मंदिर में विभाग का कर्मचारी हनुमान जी की प्रतिमा के समक्ष धूप प्रज्ज्वलित कर देता है। लेकिन स्थानीय श्रद्धालुओं का कहना है कि यदि इस मंदिर का पुन: बनवाया जाए तो निश्चित ही श्रद्धालुओं की संख्या में इजाफा होगा।
पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित सीताराम जी मंदिर में पिछले 600 वर्षों से भगवान श्रीराम और सीता जी की प्रतिमा मौजूद नहीं है। मुगल शासन काल में तीर्थनगरी के वराह मंदिर व सीताराम जी मंदिर को भारी क्षति पहुँचाई थी। सन 1511 में सिकंदर लोदी और सन 1693 में औरंगजेब ने इस मंदिर में मौजूद सीता और राम की प्रतिमाओं को खंडित कर मंदिर को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। मुगलों के शासन के अंत के बाद नेपाल नरेश ने वराह मंदिर का पुनरुद्धार कराया था, लेकिन सीताराम जी मंदिर में आज तक प्रभु श्रीराम व सीता जी की प्रतिमा स्थापित नहीं हो पाई। पुरातत्व विभाग द्वारा नियुक्त कर्मचारी मंदिर को सुबह शाम खोलकर मंदिर में रखी हनुमान जी की प्रतिमा पर धूपबत्ती लगा देता है। इसे दर्शनीय दृष्टि से विकसित नहीं किया गया है।
बोले लोग-
– तीर्थनगरी का इतिहास काफी समृद्धिशाली रहा है। यहां मंदिरों की एक बड़ी श्रृंखला थी। सूकरक्षेत्र वृद्ध गंगा, हरिपदी गंगा, भागीरथी गंगा की त्रिवेणी था। मुगलों ने हिंदू संस्कृति के संवाहक इस केंद्र को सुनियोजित तरीके से कई वर्षों तक अभियान चलाकर पूर्णतया नष्ट कर दिया था। सन 1511 में सिकंदर लोदी और सन 1693 में औरंगजेब ने इस मंदिर प्रतिमाओं को खंडित कर मंदिर को नष्ट किया।-डा. राधाकृष्ण दीक्षित, पुरातत्वविद
– आम जन मानस में यह मंदिर राजा सोमदत्त सोलंकी की यज्ञ शाला के रूप में विख्यात है। इस मंदिर की चाहरदीवारी अत्यंत प्राचीन पत्थरों से निर्मित है। मंदिर के अंदर पत्थरों के विशाल खंबे लगे हुए हैं। जिन पर संस्कृत एवं पाली भाषाओं में विविध प्रकार के लेख खुदे हुए हैं। सन 1862 में विश्व विख्यात पुरातत्ववेत्ता अलेग्जेंडेर कनिंघम ने भी अपने अध्ययन में यह पाया था कि यह मंदिर अतिप्राचीन है, जो अपने समय की एक समृद्धशाली सभ्यता का हिस्सा था। इसका पुनरुद्धार जरूरी है। – डॉ. प्रभाकर पाराशरी, संपादक तुलसी मानस
– सीताराम मंदिर के स्तंभों पर पाए जाने वाला सबसे प्राचीन लेख सन 1169 का तथा सबसे अर्वाचीन लेख सन 1511 का है। इन लेखों की कुल संख्या 31 है। वर्तमान सीताराम मंदिर की बनावट, आकार-प्रकार स्तंभों की स्थिति तथा मंदिर में प्रयुक्त कंकड़ पत्थर आदि सामग्रियों से पता चलता है कि सोरोंजी के प्राचीन दुर्ग के भग्न होने के साथ ही साथ किन्ही कारणों से यह मंदिर भी ध्वस्त हो गया और कालांतर में इसके मलबे से ही इसका जीर्णोद्वार किया गया होगा। – आचार्य राहुल वशिष्ठ
– आज तक इस मंदिर में सीता और राम की प्रतिमा की पुर्नस्थापना नहीं हो सकी है। प्रतिमा के बिना मंदिर अस्तित्वहीन है, अयोध्या के भगवान श्रीराम जी का बनवास खत्म हो गया लेकिन पौराणिक तीर्थनगरी शूकरक्षेत्र के सीताराम जी मंदिर प्रभु श्रीराम और माता जानकी का बनवास कब खत्म होगा। इस प्राचीन और पौराणिक मंदिर में माता सीता और भगवान श्रीराम की प्रतिमा फिर से विराजित करवाने के अभियान का हिस्सा बनें। इस संबंध में जिलाधिकारी को भी एक ज्ञापन सीताराम जी की मूर्तियां स्थापित कराने के संबंध में दिया जा चुका है। – भूपेश शर्मा, अध्यक्ष, अखंड आर्यावर्त निर्माण संघ
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