[ad_1]
संवाद न्यूज एजेंसी, आगरा
Updated Wed, 29 Nov 2023 12:00 AM IST
कासगंज। गन्ना की लहलहाती फसलों पर इतराने वाला तराई का इलाका अब पहचान को खोता जा रहा है। चीनी मिल के समय से फसल का भुगतान न मिलने से आहत किसान ने अब गन्ने की खेती से मुंह मोड लिया है। इसका नतीजा है कि बीते डेढ़ दशक के दौरान जिले में गन्ने का रकबा घटकर 25 प्रतिशत तक ही रह गया है।प्रदेश के गन्ना उत्पादन करने वाले चुनिंदा क्षेत्र में पहचान रखने वाला जनपद कासगंज के तराई के इलाके में फसल का रकबा तेजी से घटा है। इस क्षेत्र में शायद ही कोई ऐसा किसान रहता हो जिसके खेत में गन्ने की खेती न होती हो। नतीजतन जिले में गन्ना का रकबा अच्छा खासा था। सोरोंजी, सहावर, गंजडुंडवारा के तराई इलाके गन्ना की खेती के लिए मशहूर थे। वर्ष 2006 तक जिले में 20 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल तक में गन्ने की फसल होती थी, लेकिन आज हालत यह हैं कि किसानों का इसकी खेती से तेजी से मोह भंग हो रहा है। चीनी मिल से समय से भुगतान न मिल पाने से किसान अब अन्य फसलों को करने में प्राथमिकता देता है। उसे बाजार में बेचने के बाद नकद भुगतान मिल जाता है, जबकि गन्ना को बेचने के बाद किसान को चीनी मिल से एक साल तक इंतजार करना पड़ता है। उसके बाद भी उसे टुकड़ों में भुगतान मिलता है। वर्तमान में स्थिति यह है कि जिले में गन्ने की खेती का रकबा घटकर महज 25 प्रतिशत रह गया है।
[ad_2]
Source link