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गिरगिट ही नहीं, चंबल में मौजूद एशिया, यूरोप, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका में पाये जाने वाले सफेद बगुला (कैटल इग्रेट) भी रंग बदलता है। प्रजनन काल (मई-जून) में कैटल इग्रेट का रंग पीला, नारंगी, बादामी हो जाता है। आगरा जिले के बाह के रेंजर आरके सिंह राठौड ने बताया कि प्रजनन काल के बाद नर और मादा फिर से सफेद रंग के हो जाते हैं। इनका वैज्ञानिक नाम बुबुलकस इबिस है। इन दिनों इन्हें चंबल सेंक्चुअरी की बाह रेंज से लेकर मैदानी इलाके तक पशुओं की पीठ पर बैठे और उनके साथ चलते हुए देखा जा सकता है। बगुले पशुओं के शरीर पर मौजूद किलनी (परिजीवी कीट) आदि को अपना आहार बनाते हैं। खेतों की जुताई के समय ट्रैक्टर के पीछे-पीछे चलने वाले बगुले मिट्टी से निकलने वाले कीड़ों को खाते हैं। इसलिए इन्हें किसानों का मित्र कहा जाता है।
बाह रेंजर ने बताया कि चंबल सेंक्चुअरी में सफेद बगुले की चार प्रजातियां मौजूद हैं। जिनमें छोटा बगुला (लिटिल इग्रेट), गाय बगुला (कैटल इग्रेट), मंझला बगुला (इंटरमीडिएट इग्रेट) और बड़ा बगुला (ग्रेट इग्रेट) शामिल हैं।
बगुले के बारे में खास बातें
कैटल इग्रेट की लंबाई 45-55 सेमी, वजन 250-500 ग्राम, पंख फैलाव 85-95 सेमी होता है। कीडे़, मकड़ी, टिड्डी, मछली, मेढ़क, पके फल, वनस्पति पदार्थ इनके भोजन में शामिल हैं।
पेड़ की टहनियों पर बनाते हैं घोंसला
सफेद बगुला पेड़ की टहनियों पर अपना घोंसला बनाते हैं। घोंसले में मादा 3-5 हल्के दूधिया नीले रंग के अंडे देती हैं।
नर-मादा सफेद बगुला करीब 20 दिन तक अंडों को सेते हैं। अंडों से निकले चूजों में 15-20 दिन में पंख बनना शुरू हो जाते हैं। महीने भर में उड़ने लायक हो जाते हैं।
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