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आईएसबीटी के सामने सादिक खां, सलावत खां के मकबरों तक रास्ता नही
अतिक्रमण के कारण सकरी हो गई गली, गेट लर अक्सर लगा रहता है ताला
माई सिटी रिपोर्टर
आगरा।
नेशनल हाईवे पर आईएसबीटी के ठीक सामने सलावत खां और सादिक खां के मकबरे के गेट पर खड़े पर्यटक शनिवार को फैक्ट्री के गार्ड से पूछते दिखाई दिए कि भैया इन स्मारकों तक जाने का रास्ता कौन सा है।
दरअसल, सड़क से दोनों स्मारक दिखते तो है लेकिन अतिक्रमण से घिरे होने के कारण इन तक पहुंचने का रास्ता नजर नहीं आता। हाईवे के सर्विस लेन पर बेहद सकरी गली से होकर रास्ता है पर यहां गेट पर अक्सर ताला रहता है। हाईवे पर इन दोनों स्मारकों के नोटिस बोर्ड या साइनेज ना होने के कारण पर्यटक बिना देखे ही जा रहे हैं।
लाल पत्थर से बने स्मारक 64 खम्भा का असल नाम सलावत खां मकबरा है। मुगल बादशाह शाहजहां के साले और वजीर सलावत खां के मकबरे तक पर्यटक पहुंच नही पाते, क्योकि इसका रास्ता तलाशना ही मुश्किल है। इसके आसपास अवैध निर्माण हो गए। एक रास्ता ट्रांसमिशन ऑफिस के पास से है पर यहां पहले बना गेट अब बन्द कर दिया गया है।
पहला मकबरा, जहां पिता पुत्र की कब्रें एक परिसर में
आगरा।
64 खंभा के सामने सफेद गुम्बद का दूसरा स्मारक मुगल दरबारी सादिक खां का मकबरा है। 1633 से 1635 के बीच दो साल में सादिक खां के बेटे सलावत खां ने पिता का मकबरा बनवाया। पिता के मकबरे के पास ही सलावत खां का मकबरा है, जो 64 खंभा के नाम से चर्चित है। पिता-पुत्र की कब्रें एक लाइन में हैं। सादिक खां एत्माद्दौला की पदवी वाले मिर्जा ग्यास बेग के भतीजे थे जो मुगल बादशाह जहांगीर और शाहजहां के दरबार में भी रहे। जहांगीर ने मीर बख्शी के रूप में उन्हें 1622 में नियुक्त किया और उसके बाद 1623 में पंजाब का गवर्नर नियुक्त कर दिया। 3 सितंबर 1633 को सादिक खां के निधन के बाद बेटे सलावत खां ने उनका गैलाना में मकबरा बनवाया। सलावत खां शाहजहाँ का दरबारी था, जिसकी हत्या अमर सिंह राठौड़ ने आगरा किले में की थी। एएसआई के दस्तावेजों के मुताबिक मुगल मनसबदार अमर सिंह राठौर एक बार स्वीकृत अवकाश से अधिक दिनों तक दरबार से गैरहाजिर रहे। इस पर सलावत खां के कहने पर शाहजहां ने उन पर बड़ी रकम का जुर्माना कर दिया। इससे उत्तेजित होकर अमर सिंह ने भरे दरबार में उसका कत्ल कर दिया।
पर्यटकों के लिए खुले है दोनो स्मारक
आगरा।
एएसआई अधीक्षण पुरातत्वविद राजकुमार पटेल का कहना है कि दोनों स्मारक पर्यटकों के लिए निशुल्क है यहां किसी तरह का कोई टिकट नहीं है। हाईवे की ओर इसका मुख्य प्रवेश द्वार है। कोई पर्यटक देखना चाहता है तो उसे गार्ड प्रवेश देते हैं। अराजक तत्वों के कारण गेट बंद रखते हैं।
सलामत खान और सादिक खान के मकबरे वास्तुकला के हिसाब से अनूठे हैं। पर्यटकों को इनकी जानकारी नहीं है। जब कभी हम सिकंदरा से लौटते हुए उन्हें दिखाते हैं तो इस पर हैरानी जताते हैं कि यहां तक पहुंचने का कोई मार्ग नहीं है।
शमशुद्दीन, अध्यक्ष, आगरा एप्रूव्ड गाइड एसोसिएशन
ताजमहल किला और सीकरी के अलावा पर्यटन विभाग ने आगरा के अन्य स्मारकों का प्रचार-प्रसार ही नहीं किया जबकि यह स्मारक भी लोगों को आकर्षित करते हैं। इनके चारों तरफ अतिक्रमण इस कदर है कि इन धरोहरों पर खतरा मंडरा रहा है
राजीव सक्सेना, अध्यक्ष, टूरिज्म गिल्ड
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