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– फोटो : istock
यदि आपको उच्च न्यायालय या उसके अधीनस्थ किसी भी जनपद न्यायालय से सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत सूचना पानी है तो उसके ऑनलाइन आरटीआई पोर्टल पर आरटीआई प्रार्थनापत्र लगा सकेंगे। शुल्क भी ऑनलाइन भुगतान कर सकेंगे। जन सूचना अधिकारी के खिलाफ भी ऑनलाइन अपील करने की सुविधा होगी। यह आदेश आगरा के वरिष्ठ अधिवक्ता व आरटीआई एक्टिविस्ट केसी जैन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वर्ष 2020 में प्रस्तुत की गई जनहित रिट याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, पीएस नरसिम्हा व जेबी पारदीवाला की पीठ ने दिया है।
अधिवक्ता जैन ने बताया कि वर्तमान में 2500 से अधिक विभाग व लोक प्राधिकारी उस पोर्टल पर हैं, किंतु देश के अधिकांश उच्च न्यायालयों ने ऑनलाइन आरटीआई पोर्टल नहीं बनाया। उनके अधीनस्थ आने वाले जनपद न्यायालयों का कोई आरटीआई पोर्टल नहीं बना है। आवेदकों को असुविधा का सामना करना पड़ता है। इसके लिए उन्होंने जनहित रिट याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगाई।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी बात रखी और बताया कि किसी भी हाईकोर्ट ने अपने जनपद न्यायालयों के लिए ऑनलाइन आरटीआई पोर्टल की व्यवस्था नहीं की है। दिल्ली व मध्य प्रदेश उच्च न्यायालयों ने अपने लिए आरटीआई पोर्टल बना लिया है। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने विभिन्न उच्च न्यायालयों के अधिवक्ताओं से प्रश्न किया कि उच्च न्यायालय आरटीआई पोर्टल क्यों नहीं बना सकते हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अपना आरटीआई पोर्टल बना लिया है।
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सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सभी पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश किया कि ऑनलाइन आरटीआई पोर्टल के अभाव में लोगों को प्रार्थनापत्र लगाने पड़ते हैं। जबकि सूचना अधिकार अधिनियम की धारा-6 के तहत इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से प्रार्थनापत्र लगाने का प्रावधान है। उच्च न्यायालय को अधिनियम की धारा-2(ई) सपठित धारा-28 के अंतर्गत अपने आरटीआई नियम बनाने का अधिकार है। इसलिए उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल अपने उच्च न्यायालयों की और उनके अधीन आने वाले जनपद न्यायालयोें के लिए आरटीआई पोर्टल की तीन माह के अन्दर स्थापना करें और उसको कार्यशील बनाएं। इसी के माध्यम से आरटीआई प्रार्थनापत्र व अपील लग सकेंगी। हाईकोर्ट अपने आरटीआई नियम बना सकते हैं। अधिवक्ता जैन ने कहा कि देश के 25 उच्च न्यायालयों और लगभग 766 जनपद न्यायालय सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के अंतर्गत आ जाएंगे। जहां पर सूचना प्राप्त करने के लिए अब ऑनलाइन प्रार्थनापत्र लगाया जा सकेगा।
अधूरी वेबसाइटों के विरुद्ध भी सुनवाई
अधिवक्ता जैन की ओर से प्रस्तुत की गई अन्य जनहित याचिका भी सुप्रीम कोर्ट की इसी बेंच के समक्ष लगी हुई थी। इसमें यह कहा गया है कि सरकारी विभाग व लोक प्राधिकारी अपनी वेबसाइट पर सभी आवश्यक सूचनाएं नहीं देते हैं। जोकि सूचना अधिकार अधिनियम की धारा-4 का उल्लंघन है। धारा-4 का उद्देश्य यही है कि लोगों को सूचनाएं स्वतः उपलब्ध हो जाएं। इस याचिका को भी सुनने के बाद अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल माधवी दिवान की मांग पर 3 सप्ताह का समय केंद्र सरकार को दे दिया।
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