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डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा
– फोटो : अमर उजाला
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उत्तर प्रदेश के आगरा में डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय (पूर्ववर्ती आगरा विश्वविद्यालय) ने 30 साल पहले यूजीसी और उत्तर प्रदेश स्टेट मेडिकल फैकल्टी से पाठ्यक्रम की मान्यता के बिना ही पीजी डिप्लोमा करवाया था। इस मामले में कोर्ट के आदेश पर तत्कालीन कुलसचिव, विभागाध्यक्ष रसायन खंदारी कैंपस, वित्त अधिकारी और विश्वविद्यालय के डिग्री और अंकतालिका संबंधित विभाग के विरुद्ध धोखाधड़ी सहित अन्य धाराओं में हरीपर्वत थाना में मुकदमा दर्ज किया गया है।
ऐसे किया गया छात्रों को गुमराह
अभियोग सिकंदरा आवास कालोनी निवासी नीलम कुमार कुलश्रेष्ठ ने दर्ज कराया है। उनके अनुसार कुलसचिव द्वारा 17 जुलाई 1989 को रासायनिक विभाग में शैक्षिक कमेटी की बैठक में पीजी डिप्लोमा इन क्लीनिकल केमेस्ट्री स्वीकृत किया गया। पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए विज्ञापन दिया गया। वादी नीलम कुमार ने डिप्लोमा पाठ्यक्रम में वर्ष 1990 में प्रवेश लिया था।
छात्रों को बताया यूजीसी और सरकार से मान्यता प्राप्त है
बताया कि पाठ्यक्रम का शुल्क 4400 रुपये थे। विश्वविद्यालय द्वारा पीजी डिप्लोमा 1989 से 91 तक संचालित किया गया। उन समेत 90 छात्रों को बताया गया कि वह यूजीसी और सरकार से मान्यता प्राप्त है। इसे सरकारी और अर्धसरकारी सेवा में भी स्थान दिया जाएगा। नीलम कुमार के अनुसार पांच वर्ष पहले उन्हें कुछ संस्थान ने बताया कि उक्त पीजी डिप्लोमा मान्यता प्राप्त नहीं है।
जानकारी मांगने पर नहीं मिला संतोषजनक जवाब
उन्होंने सचिव उत्तर प्रदेश स्टेट मेडिकल फैकल्टी को पत्र लिखकर जानकारी मांगी। उन्हें अवगत कराया गया कि पीजी डिप्लोमा इन क्लीनिकल केमेस्ट्री की मान्यता संबद्धता का स्टेट मेडिकल फैकल्टी लखनऊ से किए जाने का कोई प्रावधान नहीं है। इसके बाद उन्होंने वर्ष 2019 में सूचना के अधिकार के तहत विश्वविद्यालय से जानकारी मांगी। संतोषजनक जवाब नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने लोकपाल, कुलाधिपति और मुख्यमंत्री के यहां पत्राचार किया।
पाठ्यक्रम का सरकार से मान्यता प्राप्त नहीं
पीजी डिप्लोमा की मान्यता को लेकर उसकी स्थिति स्पष्ट करने की मांग की। निरंतर सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने के बाद डॉ. भीमराव आंबेडकर विवि ने फरवरी 2022 में उन्हें जानकारी दी। बताया कि उक्त पाठ्यक्रम का सरकार से मान्यता प्राप्त नहीं है।
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