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यही कहा कि घर में आग लगी थी। हर तरफ धुआं भरा हुआ था। बिजली गुल होने से अंधेरा हो गया। फिर किसी को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। वह बार-बार बच्चों को ढूंढ रहे थे। चार मरीज, तीमारदार और कर्मचारी बाहर आ गए थे। मगर, बच्चे नहीं दिखाई दे रहे थे। पहले उन्हें लवी नजर आया। बाद में बहू दिखी। वह अस्पताल के अंदर से जा रही सीढ़ियों से बाहर आ गई। आखिरी में राजन सामने आ गया। मगर, सिमरन और ऋषि कहीं नहीं दिख रहे थे। काफी देर तक आवाज लगाई, तब भी वो सामने नहीं आए। तब लगा कि दोनों अंदर ही सोते रह गए होंगे। बहू बच्चों के लिए चीखने लगी। इस पर राजन दौड़ पड़े।
गोपीचंद ने बताया कि राजन मुंह पर कपड़ा लेकर अंदर की तरफ चले गए। फिर बाहर नहीं आए। ऐसे में वह (गोपीचंद) डर गए। इस पर वो बगल के होटल की छत से अपने घर की छत पर पहुंचे। यहां से सीढ़ियां घर के अंदर जाती हैं। उससे वो अंदर पहुंचे। तब तक पुलिस और अन्य लोग भी अंदर चले गए थे। राजन फर्श पर पड़ा था।
उन्होंने बताया कि सिमरन बेड पर थी। ऐसा लग रहा था कि वह सेाती रह गई। ऋषि बाथरूम में बेहोश पड़ा हुआ था। उसने बचने के लिए ऐसा किया होगा, लेकिन बाथरूम में भी धुआं भर गया। आधे घंटे बाद उन्हें बाहर निकाला गया। मगर, तब तक तीनों की जान जा चुकी थी।
नर्स ने निकाला मरीजों को
हॉस्पिटल में रात के समय नर्स सहित चार लोगों का स्टाफ रहता है। नर्स स्नेहा ने बताया कि अस्पताल में आग लगता देखकर उन्होंने सबसे पहले मरीजों के हाथ में लगी ड्रिप निकाली। उस समय चार मरीज भर्ती थे। इसलिए जल्दी उन्होंने ड्रिप निकालकर मरीजों को बाहर निकाल लिया। कुछ लोगों के साथ तीमारदार भी थे। इसके बाद शोर मचाना शुरू कर दिया। इस पर बगल में स्थित होटल के कर्मचारी आ गए। उन्होंने आग बुझाने के प्रयास शुरू कर दिए। वह होटल से सबमर्सिबल पंप का पाइप निकालकर लाए। आधे घंटे बाद पुलिस पहुंची। दमकल ने आग पर काबू पाया।
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