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आगरा में उत्तर भारत की प्रसिद्ध रामबरात की शुरुआत 82 साल पहले हुई थी। धौलपुर के राजा रामबरात में हाथी व चांदी का हौदा, शाही बैंड भेजा करते थे। शहर के व्यापारी बरात के साथ बैलगाड़ियों में बैठकर चलते और सूखे मेवे, बर्तन, फल बांटते थे। बरात लालटेन व हंडों की रोशनी में निकाली जाती थी।
पुराने शहर में निकाली जाने वाली रामबरात का रूट पहली रामबरात के समान ही है। श्री रामलीला कमेटी के मंत्री राजीव अग्रवाल की तीन पीढ़ियां आयोजन से जुड़ी रही हैं। उन्होंने बताया कि 70 के दशक तक रामबरात शाम 5-6 बजे प्रारंभ हो जाया करती थी। बरात रात में ही जनकपुरी में पहुंचती और सवेरे तक रस्में चलती रहती थीं।
हाथी पर बैठकर निकलते थे श्रीराम
उन्होंने बताया कि वर्ष 1947 के बाद तक धौलपुर के महाराजा हर साल राम बरात के लिए हाथी, चांदी का हौदा, जिस पर श्रीरामचंद्र जी बैठकर निकलते थे और अपना शाही बैंड बाजा भेजा करते थे। बरात में सबसे आगे एक छोटे से गोल रथ में एक बहुत बड़ा पीला झंडा चलता था जिस पर लिखा रहता था श्री रामचंद्राय नम:।
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