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छोटे बेटे ने मां को ढांढस बंधाया।
– फोटो : अमर उजाला
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आगरा लाल (कैप्टन शुभम गुप्ता) की जुदाई में मां की आंखें 12 दिन से रो-रोकर पथरा सा गईं थीं। सोमवार को राजोरी से बेटे की यादों से भरा संदूक आया तो उनकी आंखें फिर भीग गईं। बेटे की वर्दी, तस्वीर, कपड़ों आदि को सीने से लगाया, दुलारा, चूमा फिर दहाड़ मारकर रोने लगीं। बोलीं, मेरा शुभम कहां है, उसे क्यों नहीं लाए… मुझे तो मेरा बेटू चाहिए। मां की ऐसी करुण पुकार ने आसपास मौजूद हर शख्स की आंखों को नम कर दिया। छोटे बेटे ऋषभ मां को दिलासा देने में जुटे रहे।
राजोरी में 22 नवंबर को कैप्टन शुभम गुप्ता की शहादत हुई थी। घर में 12 दिन से गम के बादल हैं। नाते-रिश्तेदार, सेना के अधिकारी और आसपास के लाेग परिजन के साथ यादें साझा कर रहे हैं। बेटे के गम में मां पुष्पा गुप्ता की आंखों के आंसू सूख गए थे। वह एकटक बेटे की तस्वीर को ही ज्यादा समय निहारती रह रहीं थीं। रविवार देर शाम राजोरी से सैन्य अधिकारी बलिदानी शुभम के प्रयोग किए जाने वाले सामानों से भरा संदूक लेकर घर पहुंचे। इसमें वर्दी, बैज, कैप, लैपटॉप समेत अन्य सामान देख वो बेटे के लिए रोने लगीं। वर्दी को सीने से लगातीं तो कभी बैज को चूमतीं।
बिलखते हुए सेना के अधिकारियों से बोलीं, मेरे बेटे को कहां छोड़ आए, उसे भी साथ लेते आते। बार-बार यही कहते हुए वो बेसुध भी हो जा रहीं थीं। छोटे बेटे ऋषभ ने मां के गले लगकर उन्हें ढांढस बंधाने की कोशिश की। कभी आंसू पोंछते तो कभी कहते भइया कहीं नहीं गए, वो हमारे दिल में हैं। ये दिलासा देने भर की कोशिश थी, लेकिन मां की आंखों से आंसू थम नहीं रहे थे।
कोने में सुबके पिता, बोले- यादें संजो रहे
वहीं दूसरी ओर बेटे के सामान को देखकर कोने में सुबक रहे पिता बसंत गुप्ता के बमुश्किल बोल फूट रहे थे। खुद को संभालते हुए बोले, बेटे के जाने के बाद उसकी वीडियो, फोटो देखकर यादें संजो रहे हैं। दो-तीन दिन पहले शुभम के सेना के साथी ने दिवाली का फोटो भेजा था, जिसमें वो अपनी तैनाती स्थल पर मोमबत्ती जला रहे थे। दिवाली से पहले बेटे ने कहा था कि पिताजी छुट्टी पर आ रहा हूं और एक साथ सभी दिवाली मनाएंगे। हमें नहीं पता था कि फिर दोबारा बेटे को नहीं देख पाऊंगा।
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