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चांदी
– फोटो : iStock
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कभी मथुरा को चांदी की बड़ी मंडी कहा जाता था, जो अब आगरा शिफ्ट हो गई है। इसके बाद भी यहां चांदी का कारोबार एक हजार करोड़ से अधिक का बताया जाता है। रिकाॅर्ड में देखें तो ये कारोबार महज 100 करोड़ तक ही सिमटा है। बाकी 90 प्रतिशत चांदी कारोबार कच्ची रसीदों पर ही यहां चल रहा है।
मथुरा की पाजेब देश भर में अपनी अलग ही पहचान रखती है। यहां बनी चांदी की पाजेब उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के साथ बिहार, छतीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु तक जाती थी। हालांकि यह पहचान अब पिछले कुछ वर्षों के दौरान कमजोर हुई है। चांदी के स्थान पर गिलेट ने तेजी से अपनी जगह बनाई है। अब यहां गिलेट से बने आभूषण एनसीआर में प्रख्यात हो रहे हैं।
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जानकारों का कहना है कि मथुरा में चांदी और गिलेट का कारोबार करीब एक हजार करोड़ के आसपास का है। यहां दो हजार कारोबारी चांदी और गिलेट के कारोबार से ही जुड़े हुए हैं। हालांकि सरकारी रिकाॅर्ड को देखेंगे तो यह संख्या महज 10 प्रतिशत ही सिमटती नजर आएगी। सालाना कारोबार महज 100 करोड़ और पंजीकृत कारोबारियों की संख्या भी छह सौ के आसपास ही है। सरकारी और गैर सरकारी आंकड़ों में 90 प्रतिशत का यह कारोबारी अंतर महज तीन प्रतिशत जीएसटी और इनकम टैक्स को बचाने के लिए होता है।
गोरखपुर में आयकर छापे के दौरान यह बात स्पष्ट भी हो चुकी है कि मथुरा के कारोबारी भी कच्ची रसीदों पर चांदी का लेनदेन कर रहे हैं। अनेक बार रेल और बसों में भी चांदी पकड़ी गई है। चांदी की चोरी की घटनाओं के बाद भी देखने में आता है कि ज्यादातर व्यापारी कानूनी दांवपेंच से बचते हैं। इसका मुख्य कारण भी सरकारी रिकाॅर्ड के बाहर चांदी का लेनदेन रहता है। हालांकि गोरखपुर छापे में सामने आए मथुरा के कारोबारियों के नाम से यहां खलबली मची हुई है।
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