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यमुना नदी में गिरते हैं कई नाले
– फोटो : अमर उजाला
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उत्तर प्रदेश के आगरा में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने यमुना नदी में 91 नालों के जरिये पहुंच रहे प्रदूषण पर दाखिल की गई नगर निगम की रिपोर्ट पर नाराजगी जताई। इस पर सवाल उठाया और राज्य सरकार के प्रतिनिधि से पूछा कि अगर यमुना नदी इतनी साफ कर दी है तो क्या आप उसका पानी पी सकते हैं। निगम ने नालों से हो रहे डिस्चार्ज की जो रिपोर्ट सौंपी थी, उसमें किसी में भी कॉलीफार्म और बैक्टीरिया नहीं बताए गए।
इस पर याचिकाकर्ता डॉ. संजय कुलश्रेष्ठ ने एनजीटी बेंच के सामने फर्जी करार देते हुए सवाल खड़े किए थे। एनजीटी के चेयरपर्सन जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव, ज्यूडिशियल मेंबर सुधीर अग्रवाल और एक्सपर्ट मेंबर ए सेंथिल वेल की बेंच ने मुख्य सचिव की ओर से किसी प्रतिनिधि के पेश न होने को दुर्भाग्यपूर्ण कहा और छह सप्ताह में रिपोर्ट दाखिल करने के लिए समय दिया है। याचिका की सुनवाई के दौरान मुख्य सचिव की ओर से क्लोरीनेशन, फर्टिइरीगेशन की रिपोर्ट न देने पर फटकार लगाई गई।
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सुनवाई में याचिकाकर्ता डॉ. संजय कुलश्रेष्ठ ने नालों के जरिए यमुना नदी में पहुंच रहे प्रदूषण पर कई सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि नगर निगम ने 43 जगह से पानी के नमूनों की जांच रिपेार्ट दी है। इसमें फीकल कॉलीफर्मा की संख्या जीरो है, जो असंभव है। 43 फीसदी सीवर यमुना में नालों से पहुंच रहा है, फिर कॉलीफार्म की संख्या जीरो कैसे हो गई, जबकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सैंपल में इनकी संख्या 30 हजार तक है।
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कहा कि यह फर्जी रिपोर्ट है, इसमें भैंरो नाला और मंटोला नालों से भी फीकल कॉलीफर्मा जीरो दिखा दिए गए। यह डिस्टिल वाटर की तरह है। इस पर बेंच ने पर्यावरण मंत्रालय और लखनऊ से प्रदूषण निंयत्रण बोर्ड के अधिकारियों से पूछा कि क्या वह यह पानी पी सकते हैं तो उन्होंने मना कर दिया। बेंच ने कहा कि जब यह पानी पी नहीं सकते तो आगरा के लोगों को क्यों पिला रहे हैं।
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