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Shri Krishna Janmabhoomi
– फोटो : अमर उजाला
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दरअसल, वर्ष 1968 में समझौता हुआ था। इसी समय इस दीवार का निर्माण कराया गया, जो श्री कृष्ण जन्मस्थान पर मौजूद भागवत भवन के उत्तर तथा ईदगाह के दक्षिण का हिस्सा है। काफी ऊंची दीवार की आगे की ओर ईदगाह का हिस्सा है। दीवार पर ईंटों को लगाया गया है। बीच-बीच में यह ईंटें बाहर निकल गई हैं। इनके स्थान पर कुछ पुरातत्व महत्व के अवशेष उभर आए हैं। यह अवशेष किसी मंदिर के हिस्से हो सकते हैं। समय-समय पर इस दीवार की मरम्मत की जाती रही है। मरम्मत के बाद यह अवशेष दीवार के अंदर छिप जाते हैं।
निकलते हैं मंदिर के अवशेष
यह बात तो पहले से ही पुष्ट है कि इस स्थान पर जब-जब खुदाई हुई मंदिरों के टूटे हुए हिस्से निकले हैं। यदि दीवार से भी कोई अवशेष निकल रहा है तो वह कोई नई बात नहीं हैं। श्री कृष्ण जन्मस्थान पर जब पुलिस कंट्रोल रूम तैयार कराया जा रहा था, तब भी काफी अवशेष निकले थे। -कपिल शर्मा, सचिव श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान
आक्रांताओं ने तोड़े हैं मंदिर
कई दफा आक्रांताओं ने श्रीकृष्ण जन्म स्थान के मंदिर तोड़े हैं। वर्ष 1017 ईसवी में महमूद गजनबी ने सम्राट चन्द्रगुप्त द्वारा निर्मित मंदिर को तोड़ा। वर्ष 1150 ईसवी में मगोर्रा के सामंत शासक जाजन उर्फ जज्ज सिंह द्वारा निर्मित मंदिर को सिकंदर लोदी ने 16 वीं सदी में क्षतिग्रस्त कर दिया। वर्ष 1618 ईसवी में ओरछा के बुंदेला राजा वीर सिंह जुदेव ने मंदिर का निर्माण कराया जिसे वर्ष 1669 ईसवी में मुगल शासक औरंगजेब ने क्षतिग्रस्त कर दिया।
बंद कमरे में हुई ईदगाह कमेटी की गोपनीय बैठक
श्री कृष्ण जन्मस्थान-ईदगाह प्रकरण पर अध्यक्ष डॉ. जहीर हसन द्वारा दिया गया अदालत के बाहर मामले को मिल बैठकर सुलझाने संबंधी बयान के बाद ईदगाह कमेटी की पहली बैठक आयोजित की गई। कमेटी द्वारा मुद्दे पर बोलने का समस्त अधिकार सचिव तनवीर अहमद को दिया गया। कमेटी के निर्णय के साथ ही अध्यक्ष द्वारा की जा रही पैरवी पर विराम लग गया है। इस संबंध में अध्यक्ष डॉ. जहीर हसन ने बताया कि जो जानकारी देंगे सचिव ही देंगे।
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