[ad_1]
परम श्रद्धेय दादाजी के निधन पर मैं हृदय की गहराइयों से शोकाकुल हूं। वह राधा स्वामी संप्रदाय के अधिष्ठाता होने के नाते तो परम विशिष्ट थे ही, व्यापक परिप्रेक्ष्य में वे महामानव थे। मुझ पर उनकी विशेष अनुकंपा रही। उनके विराट् अभिनंदन ग्रंथ के प्रणयन में मेरी भी छोटी सी भूमिका थी। सेवानिवृत्ति से पहले तक बीच-बीच में उनके पावन दर्शनों से कृतार्थ होता रहता था। आज मैं शिक्षा जगत में जो भी हूं, उनकी सहज कृपा का परिणाम है। उनके न होने से मैंने अपने संरक्षक को खो दिया। -डॉ. जयसिंह नीरद (पूर्व निदेशक- केएम हिंदी एवं भाषा विज्ञान विद्यापीठ, आगरा विश्वविद्यालय)
प्रख्यात इतिहाविद, शिक्षाविद, समाज के ऊर्ध्वचेता मनीषी, साहित्य मर्मज्ञ, राधास्वामी मत के अमृतवर्षी धर्मगुरु, आगरा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति परम श्रद्धेय दादा डॉ. अगम प्रसाद माथुर का जाना अत्यंत हृदयविदारक है। दादा जी से सहज रूप में प्राप्त स्नेह मेरी अमूल्य धरोहर है। वे हमारी स्मृति में सदैव जिंदा रहेंगे। फिराक गोरखपुरी के इस एहसास के साथ कि “ऐ मौत हमको आकर खामोश कर गई तू/ सदियों दिलों के अंदर हम गूंजते रहेंगे”। -डॉ. कुसुम चतुर्वेदी
एक युगपुरुष का चला जाना सुनकर मानस पटल पर उनके सानिध्य और सौजन्य की अनगिनत स्मृतियों से हृदयाघात जैसा आभास हुआ। आगरा कॉलेज में इतिहास पढ़ते हुए उनके श्लोक जैसे कथन कि सफल वही, सफलता जिसके कदम चूमे। आज भी मेरे कानों में गूंजते रहते हैं। लगभग 19-20 वर्ष पूर्व मेरी पुस्तक प्रकाशित करने के लिए आर्थिक सहयोग देते हुए संदेश भिजवाया -मिलन के गीत मुझे बेहद रुचे। महत मस्तिष्क मननशील होता है तो मुदित मन मुखरित होना।…. वे इतिहास और साहित्य की अतुल्य धरोहर थे। -डॉ. राजेन्द्र मिलन, साहित्यकार
आगरा की आन बान और शान थे दादाजी महाराज। उनके चेहरे की दीप्ति और सदा खेलती हल्की सी मुस्कुराहट ,किसी को भी अपना बना लेती थी । सैकड़ों मंचों पर उनका आशीर्वाद मुझे मिला है।उनके शब्दों में सदैव प्रेरणा का झरना फूटता रहता था। उनके परलोक गमन से आगरा के आध्यात्मिक और साहित्यिक संसार में एक ऐसा शून्य पैदा हो गया है जिसकी भरपाई होना मुश्किल है। -सुशील सरित
[ad_2]
Source link