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रामलाल वृद्धाश्रम आगरा
– फोटो : अमर उजाला
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माता-पिता जीवन में वह स्तंभ होते हैं, जिनके बिना न घर टिकता है और न ही खुशियां। पर, हर सिक्के के दो पहलू की तरह हर रिश्ते के भी दो पहलू दिखते हैं। सिकंदरा स्थित रामलाल वृद्धाश्रम में पितृपक्ष के आखिरी दिन रिश्तों की दो तस्वीर देखने को मिली। एक ही स्थल पर कुछ के लिए बुजुर्ग पूज्य रहे तो कुछ के लिए त्याज्य… यानी बुजुर्ग माता-पिता को आश्रम में छोड़ने वाले भी दिखे। पितृपक्ष में भी कुछ लोग बुजुर्ग माता-पिता को आश्रम में छोड़ गए।
पितृपक्ष के आखिरी दिन रामलाल वृद्धाश्रम में अपने पूर्वजों के देव स्थलों पर पूजा करने के लिए परिजन की भीड़ रही। देव स्थलों पर परिजन पूजन करते दिखे। कुछ बुजुर्गों की आंखें भर आईं तो वहीं दूसरी तरफ पितृपक्ष में अपनों से तिरस्कृत होकर वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्ग गेट पर टकटकी लगाए अपने बच्चों को इंतजार करते दिखे। अमावस्या पर आए सभी लोगों ने पितरों का तर्पण कर बुजुर्गों को भोजन कराया।
नहीं होती बरकत
वजीरपुरा निवासी अनिल ने बताया कि बड़ों के आशीर्वाद के बिना घर की बरकत नहीं होती। इसलिए हम अपने पूर्वजों के देवस्थलों पर हर अमावस्या पूजन करने आते हैं।
मन बहुत दुखी होता है
जीवनी मंडी के हर्ष गुप्ता ने बताया कि जब भी वृद्धाश्रम आता हूं। मन बहुत दुखी होता है कि कैसे लोग अपने माता-पिता का इस उम्र में छोड़ जाते हैं। पिछले दो साल से आश्रम अपने देवस्थलों पर पूजन के लिए आ रहा हूं।
बुढ़ापे में छोड़ देते हैं बच्चे
वृद्धाश्रम निवासी राजरानी गोयल ने बताया कि जिंदगी भर बच्चों के लिए क्या नहीं करते और बुढ़ापे में यहां छोड़ देते हैं। ये भी किसी के बच्चे हैं, जो अपने पूर्वजों को आज भी याद करते हैं। हमें तो जिंदा रहते भी नहीं पूछते।
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