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चंद्रोदय मंदिर के अध्यक्ष चंचलापति दास ने बताया कि गौड़ीया वैष्णव आचार्य भक्ति विनोद ठाकुर गौर तत्व की व्याख्या में कहते हैं कि चैतन्य महाप्रभु स्वयं नंद सुता हैं। प्रेमावतार चैतन्य महाप्रभु निज नाम का दान करने के लिए अवतरित हुए। उन्होंने कलियुग में अधम प्राणियों के उद्धार के लिए, महाप्रभु ने नाम प्रभु के रूप में अवतरण लिया।
उन्होंने हरे कृष्ण मंत्र को जन सामान्य के लिए प्रकाशित किया। इनका पूरा शरीर संकीर्तन शरीर है। अतः इनके शरीर से सदैव हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे का प्रवाह होता है। श्री चैतन्य महाप्रभु को प्रेमावतार करुणावतार कहा गया है।
श्रीराधा जी को श्रीकृष्ण से प्रेम करके कैसा रसास्वाद मिलता है। स्वयं श्रीकृष्ण ने राधा भाव लेकर चैतन्य महाप्रभु के रूप में नदिया नामक ग्राम में जन्म लिया। श्री महाप्रभु ने उस प्रेम का आश्रय बनकर तो सुख लिया। साथ ही अधिकारी, अनाधिकारी सभी को अधिकारी बनाकर प्रेम प्रदान किया।
श्रीराम ने राक्षसों को मारा। श्रीकृष्ण ने रति प्रदान किया। चैतन्य महाप्रभु ने उनका उद्धार किया। महाप्रभु ने उनकी दुष्टता का हरण कर करुणा के योग्य बनाया। यहां मथुरा, आगरा, लखनऊ, दिल्ली, गुरुग्राम, जयपुर, हरियाणा एवं मध्य प्रदेश के अन्य जिलों सहित विदेशों से भक्तगण परिकर में उपस्थित हुए।
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