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नए सत्र में शिक्षा हुई मंहगी
– फोटो : Amar Ujala Digital
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उत्तर प्रदेश के कासगंज में निजी स्कूलों ने नया शिक्षा सत्र शुरू होने के साथ ही 15 प्रतिशत तक फीस बढ़ा दी है। प्रवेश के नाम पर स्कूल संचालक अभिभावकों से मोटी रकम वसूल रहे हैं। किताबें, स्टेशनरी पहले ही बाजार में महंगी हो चुकी है। पढ़ाई का बोझ बढ़ जाने से अभिभावक चिंतित हैं। यही नहीं स्कूलों ने कोरोना काल में ली गई फीस का 15 प्रतिशत समायोजित करने का जो आदेश जारी हुआ था उसका भी अनुपालन नहीं किए।
नया शिक्षा सत्र शुरू होने के साथ ही अभिभावक अपने बच्चों के स्कूलों में प्रवेश के लिए सक्रिय हो गए हैं। वे स्कूलों में जाकर बच्चों के प्रवेश के लिए संपर्क करने लगे हैं, लेकिन समान्य परिवार वाले अभिभावकों के लिए अब अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाना आसान नहीं रह गया है। जैसा स्कूल है उसके हिसाब से वहां की उतनी ही अधिक फीस है। संचालकों ने पिछले साल से 100 रुपये से लेकर 200 रुपये तक फीस बढ़ाया था। इसके साथ ही स्कूल में तमाम अन्य सुविधाओं के नाम पर भी शुल्क लिया जा रहा।
प्रवेश के समय स्कूलों में 5000 रुपये से लेकर 20000 रुपये तक जमा कराए जा रहे हैं। इसके अलवा कापी किताब व स्टेशनरी का खर्च अलग से लगता है। इसके खर्च भी 2000 से लेकर 8000 रुपये तक बैठ रहें है। पहले माह में पढ़ाई का इतना अधिक खर्च आ जाने से अभिभावक काफी चिंतित है। उनकी समझ में नहीं आ रहा कि वे किस तरह से इस खर्च को व्यवस्थित करेंगे।
अभिभावकों की बात
अभिभावक हरिओम ने कहा कि स्कूल में पिछले साल अप्रैल माह में पांच हजार रुपये जमा कराए गए। वहीं सात सौ रुपये स्कूल फीस प्रतिमाह ली गई, लेकिन इस साल पहले माह में छह हजार रुपये जमा कराए जा रहे हैं। फीस में सौ रुपये माह की वृद्घि की गई है।
अभिभावक राकेश ने कहा कि शासन से कोरोना काल में ली गई फीस का 15 प्रतिशत धन समायोजित करने के आदेश दिए थे, लेकिन इन आदेशों का पालन भी नहीं किया गया। स्कूल में फीस पहले से बढ़ा और दी गई। पहले माह पंद्रह हजार रुपये जमा करने की कहा गया है।
नहीं माने जा रहे समायोजन के आदेश
अभिभावक सुमन ने कहा कि बच्चों की पढ़ाई का बोझ लगातार बढ़ रहा है। स्टेशनरी, पाठय सामग्री पहले से महंगी हो गई है। फीस भी हर साल बढ़ जाती है। ऐसे में बच्चों को कैसे पढ़़ाया जाए। कोरोना के समय ली गई फीस के समायोजन के आदेश भी नहीं माने जा रहे।
अभिभावक अंजली ने कहा कि आय के साधन नहीं बढ़ रहे, लेकिन बच्चों की पढ़ाई का बोझ हर साल बढ़ जाता है। कोरोना के बाद से लोगों की आर्थिक स्थिति प्रभावित हुई है। अप्रैल आते ही बच्चों की पढ़ाई की चिंता सताने लगी है।
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