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सन 1901 में हुई थी मंदिर की स्थापना
मान्यता है कि तरौरा क्षेत्र के बाग में पीपल की जड़ में माता चामुंडा के चरण निकले। इसके बाद यहां पर सन 1901 में पहले एक छोटे मंदिर की स्थापना की गई। इसके बाद से भक्तों का आना शुरू हो गया। भक्तों की मनोकामना पूर्ण होने पर उनके द्वारा मंदिर में अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी स्थापित की जाने लगीं।
कई जिलों में आस्था का केंद्र है यह मंदिर
बताया कि नवरात्र पर्व पर मंदिर में श्रद्धालुओं का मेला लगता है। मान्यता है कि मंदिर पर सच्चे मन से पूजा अर्चना करने से माता प्रसन्न होती हैं। मां सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। नवरात्र में यहां बने हवन कुंड में भक्त आहुतियां चढ़ाते हैं। आसपास के कई जिलों में यह मंदिर आस्था का केंद्र है।
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