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चांदी की सिल्लियां
– फोटो : Social Media
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आगरा का अधिकांश चांदी कारोबार कच्ची रसीदों से लेनदेन पर टिका है। एमसीएक्स पर भाव तय होने के बाद हवाला के जरिए लेनदेन होता है। बाहर की मंडियों में माल को बेचने का काम कारीगर और ट्रेडर्स करते हैं। नकद की जगह पग्गा (चांदी की सिल्ली) को भी भुगतान के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
आगरा की चांदी का कारोबार 40 फीसदी जीएसटी और बिल के माध्यम से होता है, जबकि आधे से ज्यादा कारोबार कच्ची रसीदों, पग्गे के लेनदेन पर टिका हुआ है। आगरा से बिहार की मंडी, गोरखपुर, बहराइच, गोंडा, बस्ती सहित कई जिलों की मंडियों में कारीगर माल लेकर जाते हैं। उनका भी पूरा काम आधी रकम और आधे पग्गे पर होता है। बड़े सौदों में हवाला के जरिए रकम का आदान प्रदान हो जाता है। पुराने शहर में हवाला की कई गद्दियां संचालित हैं। इस लेनदेन का कोई ब्योरा नहीं होता है। ऐसे में लाखों के सौदे हवाला के जरिए हो जाते हैं।
वहीं चांदी का माल लेकर बाहर जाने वाले कारीगर एक हफ्ते तक मंडियों में खरीद फरोख्त करते हैं। रकम के साथ ही भुगतान के रूप में चांदी की सिल्ली भी लेकर आते हैं। कमीशन पर ट्रेडर्स भी इस कारोबार से जुड़े हैं, जोकि बाहर की मंडियों में माल खपाते हैं। इसकी एवज में उन्हें कमीशन मिलता है। पूरा कारोबार ही जुबान के सौदों पर टिका हुआ है। कई बार इसका नुकसान भी कारोबारियों को उठाना पड़ता है, लेकिन टैक्स बचाने के लिए कारोबारी रिस्क उठाने से भी गुरेज नहीं करते हैं।
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बाहर भेजते हैं कम टंच का माल
आगरा से ज्यादातर चांदी का माल 70 से 85 टंच का भेजा जाता है। इस टंच को लेकर बाहर के कारोबारियों को भी जानकारी रहती है। ज्यादातर ट्रेडर्स भी कच्ची रसीदों पर ही लेनदेन करते हैं। कारोबार से जुड़े फिनिशिंग, सफाई और प़ॉलिश करने वाले भी कई बार बिल नहीं होने के कारण कारोबारियों का माल हड़प कर जाते हैं।
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