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कासगंज। स्वतंत्रता आंदोलन में कासगंज जिले के सेनानियों ने आगे बढ़कर ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लिया था। इन्होंने देश की आजादी के लिए लाठियां और गोलियां खाईं लेकिन कदम पीछे नहीं किए। इनके हौसले चट्टान की तरह बुलंद रहे। इनकी वीर गाथाएं इतिहास में अमर हैं।
दो गोलियां लगीं, हौसला नहीं टूटने दिया
कासगंज। आजादी के आंदोलन में गोरों को धूल चटाने में महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रेमवती गुप्ता का नाम प्रमुख है। वह शहर के प्रतिष्ठित पुरुषोत्तमदास गुप्ता की पत्नी थीं। उन्होंने आजादी के आंदोलन में महिला टोली के साथ हिस्सा लिया था। असहयोग आंदोलन, नमक आंदोलन सहित कई सत्याग्रह में उन्होंने बढ़ चढ़कर हिस्सेदारी निभाई। नमक सत्याग्रह में सोरोंजी में 5 जुलाई 1930 को ब्रिटिश फौज ने फायरिंग कर दी थी। इसमें इन्हें दो गोलियां लगीं। हौसले पस्त नहीं हुए। पति और परिवार का पुलिस ने उत्पीड़न किया। बाद में ब्रिटिश फौज ने गिरफ्तार कर लिया। उन्हें जेल में रहना पड़ा।
वैद्य की भैंस खोल ले गए थे अंग्रेजी फौज के लोग
कासगंज। स्वतंत्रता आंदोलन में शहर के तमाम क्रांतिकारियों ने हिस्सा लिया था। 14 अगस्त 1942 को शहर में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बड़ी बगावत हुई। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जयंती प्रसाद वैद्य ने भी अंग्रेजों से लोहा लिया। इस आंदोलन में उन्हें 9 माह की सजा हुई। अंग्रेजी फौज ने उनके घर पर तांडव मचाया। उनकी दो भैंस अंग्रेजी फौज के लोग खोलकर ले गए। इनकी पौत्री दिव्या शर्मा ने बताया कि नदरई गेट पर रोशनलाल हलवाई के सामने वाली गली में उनका घर था। वह अपने साथी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ रणनीति तैयार करते और आंदोलन की ज्वाला को आगे बढ़ाते थे। महात्मा गांधी के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने आगे बढ़कर हिस्सा लिया। कई बार उन्हें जेल जाना पड़ा। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें देश और समाज सेवा के लिए 1972 में ताम्रपत्र भेंट किया था।
गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच उतार दिया यूनियन जैक
सोरोंजी। तीर्थ नगरी के वैद्य देवशरण पाराशरी के पूरे परिवार ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। वैद्य देवशरण पाराशरी 1942 में हरिद्वार के ऋषिकुल आयुर्वेदिक कॉलेज में आईएमएस के छात्र थे। उन दिनों स्वतंत्रता आंदोलन चरम पर था। स्वतंत्रता सेनानी परिवार की पृष्ठभूमि होने के कारण उनके मन में भी आंदोलन में कूद पड़ने की भावना बलवती हुई। 13 अगस्त 1942 को आधी रात को छात्रावास में चंद साथियों के साथ गुप्त मंत्रणा कर वह निकल पड़े। रात में ज्वालापुर के पुराने कांग्रेसी नेता महाशय जी से तिरंगा झंडा तथा डंडा लेकर आजादी के तराने गाते हुए छात्रों की टोली निकल पड़ी। आजादी के दीवानों के इस काफिले में लोग जुड़ते गए। लगभग चार किलोमीटर का पैदल रास्ता तय कर सभी हर की पौड़ी, घंटाघर वाले घाट पहुंचे। यहां पोल पर यूनियन जैक लहरा रहा था। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वालों को अंग्रेज बागी कहते थे। छात्रों के आगे बढ़ते ही अंग्रेजी फौज के सिपाहियों ने लाठीचार्ज कर दिया। घुड़सवार पुलिस दौड़ा दी गई। लाठी खाते हुए देवशरण पाराशरी साथी राजकुमार गुप्त के साथ पोल तक पहुंचने में सफल हो गए। पोल पर चढ़कर यूनियन जैक उतार कर फेंक दिया। इस पर तिरंगा लहरा दिया। लाठीचार्ज में इन्हें गंभीर चोटें लगीं। बाद में पुलिस ने डाकखाना फूंकने, रेलपटरी उखाड़ने का मामला दर्ज किया। अदालत ने इन्हें बरी कर दिया। वैद्य देवशरण पाराशरी के पिता स्व. पंडित रामशरण वैद्य को स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान के लिए 15 अगस्त 1972 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ताम्रपत्र प्रदान कर सम्मानित किया था।
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