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आगरा स्मार्ट सिटी का कार्यालय
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
यातायात व्यवस्था सुधारने के लिए आगरा स्मार्ट सिटी कंपनी ने 281 करोड़ रुपये की लागत से इंटीग्रेटेड एंड कमांड सेंटर तैयार किया। शहर के 63 चौराहों पर सीसीटीवी कैमरे और इंटेलिजेंट ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम लगाए गए। महिलाओं की मदद के लिए 39 जगह पैनिक बटन लगाए। बड़े-बड़े दावे हुए लेकिन यह सेंटर ट्रैफिक सुधारने और महिला सुरक्षा संभालने दोनों में सहायक नहीं हो सका है।
दिवाली पर धनतेरस से लेकर भाई दूज तक शहर की सड़कों पर जाम लगा। आगरा अलीगढ़ रोड, बोदला, सिकंदरा, वाटरवर्क्स समेत चौराहों पर लोग चार से पांच घंटों तक जाम से जूझे। करीब 1200 सीसीटीवी लगाकर निगरानी का दावा करने वाले स्मार्ट सिटी के कमांड सेंटर से जाम खुलवाने में कोई मदद नहीं मिली। इंटेलिजेंट ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम के कैमरों और ट्रैफिक लाइट के ऑटोमेटिक संचालन के दावे अब तक जमीन पर नहीं उतर पाए। यही हाल पैनिक बटन का है, जो अब तक 8000 हजार बार दबाए गए हैं, लेकिन किसी भी मामले में मदद नहीं मिल पाई है। महताब बाग जैसे पर्यटन स्थल तक कई माह से पैनिक बटन का बॉक्स उखड़ा पड़ा है।
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35 में से 28 पर्यावरण सेंसर खराब
आगरा स्मार्ट सिटी ने शहर में 35 जगहों पर प्रदूषण की निगरानी के लिए पर्यावरण सेंसर लगाए थे, लेकिन इनमें से 28 खराब पड़े हैं। 11 सेंसरों की मरम्मत दिवाली तक करा लेने का दावा आगरा स्मार्ट सिटी ने किया था, लेकिन दिवाली के बाद भी सेंसर ठीक नहीं हुए और न ही सेंसरों का डेटा मिल पा रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने स्मार्ट सिटी के सेंसरों की रीडिंग को गुणवत्ता न होने के कारण मान्यता देने से इन्कार कर दिया है। पर्यावरणविद डाॅ. शरद गुप्ता के मुताबिक कमांड सेंटर से जुड़े सेंसर की रीडिंग सही आने लगे तो उसी क्षेत्र में विभाग प्रदूषण नियंत्रण के उपाय कर सकते हैं, लेकिन स्मार्ट सिटी इस मामले में फेल है।
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डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन भी फेल
कमांड सेंटर से घरों से उठ रहे कचरे की निगरानी भी होनी थी, लेकिन चार साल से यह फीचर भी काम नहीं कर रहा। 281 करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट में 18 करोड़ रुपये डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन की निगरानी के लिए थे। आरएफआईडी कोड और स्कैनर के साथ जीपीएस व सेंसर के नाम पर रकम खर्च किए गए। कितने घरों से कूड़ा उठाया जा रहा है, इसका एक दिन भी ट्रायल नहीं हो पाया। स्कैनर खराब निकले तो जीपीएस और सेंसर काम नहीं कर पाए। पार्षद रवि माथुर के मुताबिक डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन कंपनी को कमांड सेंटर के डेटा के मुताबिक ही भुगतान करना चाहिए।
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